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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
105 कहना है कि आप पर्याय-शक्ति को बीज-द्रव्य से भिन्न मानेंगे, तो उसमें दोष उत्पन्न होगा। इसलिए आपका यह भिन्न पक्ष भी उचित नहीं है।"
पुनः, बौद्ध जैनों से कहते हैं कि यदि आप पर्याय-शक्ति को बीज-द्रव्य से अभिन्न मानते हैं, तो पर्याय-शक्ति को उत्पन्न करने वाला तो पदार्थ ही है, अर्थात जिसमें पर्याय-शक्ति प्रकट होगी, वह तो द्रव्य ही है। तात्पर्य यह है कि द्रव्य में से ही पर्याय उत्पन्न हुई है। बीज में ही अंकर पैदा होने की शक्ति रही हुई है, इसलिए द्रव्य (पदार्थ) कृतक अर्थात् पर्याय को करने वाला हुआ, यथा-बीज में से ही अंकुर पैदा होते हैं। द्रव्य (पदार्थ) कृतक होने के कारण द्रव्य या पदार्थ क्षणिक हो गया। यदि पदार्थ क्षणिक है तथा पदार्थ से पर्याय अभिन्न है, अर्थात् पदार्थ और पर्याय- दोनों एक ही हैं, तो पदार्थ से पर्याय भिन्न कैसे होगी ? साथ ही, यदि पदार्थ क्षणिक है, तो क्षणिक पदार्थ से भी पर्याय कैसे बनेगी? अर्थात् नहीं बनेगी, अतः, यही सिद्ध होता है कि पदार्थ क्षणिक हैं। इस प्रकार, आप जैनों का यह दूसरा तर्क भी उचित नहीं है।
अब, यदि आप जैन तीसरा पक्ष ग्रहण करें, अर्थात पर्याय-शक्ति को बीज-द्रव्य से भिन्नाभिन्न कहें, तो यह भी उचित नहीं है, क्योंकि उपर्युक्त दोनों पक्ष मानने में तो, 'अभिन्न पक्ष मानने में वही क्षणिकता की सिद्धि होगी और 'भिन्न पक्ष मानने पर पदार्थ और पर्याय में कोई सम्बन्ध ही सिद्ध नहीं होगा, अतः, आप जैन यह बताइए कि फिर आपके सिद्धान्तानुसार पर्याय-शक्ति क्या है ?
जैन- बौद्ध-दार्शनिकों के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए जैन-दार्शनिक रत्नप्रभ कहते हैं कि आपने (बौद्धों ने) इस प्रकार, जो तीन प्रश्न उपस्थित किए हैं- 1. क्या पर्याय-शक्ति द्रव्य से भिन्न है ? या 2. पर्याय-शक्ति द्रव्य से अभिन्न है ? या 3. पर्याय शक्ति द्रव्य से भिन्नाभिन्न है ? आपके इन तीनों प्रश्नों में से हम तो अन्तिम भिन्नाभिन्न-पक्ष को स्वीकार करते हैं, क्योंकि पर्याय द्रव्य से न एकान्त-भिन्न हैं, न एकान्त-अभिन्न है, अपितु पर्याय द्रव्य से भिन्नाभिन्न है। इस तीसरे भिन्नाभिन्न-पक्ष में तो किसी भी प्रकार के दोष की संभावना भी नहीं रहती
71 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 712. 713 72 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 713 73 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 713
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