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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
शक्ति है, उससे उगेगा या फिर सहकारी-कारणों से उगेगा ? बीज सहकारी-कारणों के अभाव में स्वयं की शक्ति से तो उग नहीं सकता है ? दूसरे, यदि बीज अत्यन्त भिन्न सहकारी-कारणों से ही उगेगा, तो सहकारी-कारणों में भी बीज के योग्य अनुकूल सहकारी-कारण होंगे, तो ही उगेगा, अर्थात् मिट्टी, पानी, हवा, प्रकाश आदि में भी बीज को उगने की वैसी योग्यता हो, तो ही सहकारी-कारणों से बीज उगेगा। अकेले पानी से बीज उग नहीं सकता। अकेली मिट्टी से भी बीज उग नहीं सकता। अकेली हवा से भी बीज उग नहीं सकता। मिट्टी के साथ पानी का संयोग हो, अर्थात् गीली मिट्टी हो, हवा में नमी हो तथा आतप, अर्थात् सूर्य की ऊर्जा हो इन सभी अनुकूल संयोगों के मिलने पर ही तो बीज में उगने की शक्ति पैदा होती है। यदि बीज में ही उगने की शक्ति हो, तो फिर कोठी के तल भाग में रहा बीज क्यों नहीं उग जाता? यदि आप जैन कहते हैं कि मिट्टी, हवा, पानी, प्रकाश आदि विशेष सहकारी कारणों के बिना भी अन्य किन्हीं सहकारी-कारणों से भी बीज उग सकता है, तो हम बौद्धों का यह प्रश्न है कि फिर तो तीनों लोक के समस्त पदार्थों को भी सहकारी-कारण बन जाना चाहिए और किसी भी सहकारी-कारण से बीज उग सकता है ? वस्तुतः तो, बीज सहकारी-कारणों के सहयोग से ही उगता है, किन्तु सहकारी-कारणों में भी, जिनमें उगाने की विशेष शक्ति होगी, उन्हीं से बीज उगेगा। चाहे बीज में उगने की शक्ति भी हो, किन्तु विशेष सहकारी-कारणों के मिलने पर ही बीज उग सकता है, अन्यथा बीज में उगने की शक्ति हो तो भी बीज उग नहीं सकता। दूसरे, यदि विशेष सहकारी-कारण भी उस उगाने की विशेषता को प्राप्त नहीं करते हैं, तो वे उस विशेषता के अभाव में सहयोगी कैसे बनेंगे ? अर्थात् नहीं बनेंगे। जो सहकारी-कारण बीज-द्रव्य में निहित उगने की विशेष-शक्ति को अभिव्यक्त नहीं करा सकते हों, वे सहकारी-कारण भी सहकारी-कारण होने की योग्यता (सहकारी-कारणता) को कैसे प्राप्त करेंगे?
पुनः, बौद्ध-दार्शनिक जैनों से यह प्रश्न करते हैं कि क्या एक अतिशय-विशेष दूसरे अतिशय-विशेष को उत्पन्न करता है ? दूसरा अतिशय-विशेष तीसरे अतिशय-विशेष को उत्पन्न करता है ? इस क्रम में तो अनवस्था-दोष उत्पन्न हो जाएगा, अतः, आप जैनों से हम बौद्धों का
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