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सतेणं - (स्वकेन ) अपने निज
के । सतेहिंतो- (स्वकेभ्यः) अपने। सत्तसिक्खाचइयं-देखो टि.
४६ । सत्तंगपतिटिए - ( सप्ताप्रति
ष्ठितः) सातों अंगों से प्रतिष्ठित [चार पैर, सुंढ,
पूंछ और पुंचिह] । सनुयादुपालियं - ( सक्तुक
द्विपालिकाम् ) सत्त की दो
पाली को । सत्तुस्सेहे-(सप्तोत्सेधः) सात
हाथ ऊंचा। सदावेति- (शब्दापयन्ते)
बुलाते हैं। सद्धि ---(सार्धम् ) सहित । सन्धिमुहे -(सन्धिमुखे) चोरी
के लिये भीत में किये
हुए छेद में। सन्निपुष्वे - देखो टि. २८,
सन्निहियपाडिहरो - ( सन्नि
हितप्रातिहार्यः) चमत्कार
वाला, प्रत्यक्ष प्रभाववाला। समाणि... समाः) मनष्यो
के बैठने के स्थान, और
चौपाल । समखुरवालिहाणं- (समक्षुर
वालिधानम् ) जिसके खुर
और पूंछ समान है। समणाउसो - (श्रमणायुष्मन्)
हे आयुष्मान् श्रमण ! समया-(समता ) समभाव से। समलिहियं० - (समलिखित.
तीक्ष्णशृङ्गः) जिसके सींग नोंकदार और बराबर
समान हैं। समालदो-(समालब्धः) सजा
हुआ । समालहण - (समालमन)
तैयारी । सभिए -(शमितः) शांत । समुक्खित्तेहि- (समुत्क्षिप्तः)
फैंके हुए।
सन्निवइए -(संनिपतितः) गिरा
हुआ ।
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