SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निप्पाण रहित । निबंध - (निर्बन्धम् ) आग्रह | निब्भच्छेजा - (निर्भर्सयेयम् ) तिरस्कार करूं । [ २२८ ] (निष्प्राणम्) प्राण निमिज्जइ – (निमीयते) बांधी जाती है । ● नियडि – (° निकृति ) बकवृत्ति । निरिणो ( निर् + ऋण:) ऋण मुक्त । निवाएमाणा - ( निपातयमानाः ) लगाते हुए, मारते हुए । निष्वट्टणाणि ( निवर्तनानि ) जहां मार्ग खतम होते हैं ऐसे स्थान | निष्वणे - ( निर्वणान् ) घाव से रहित । निब्बु – (निर्वृतिम् ) शांति को निसंसतिए - (नृशंसकः ) निर्दय | निसामेत्तए - (निशमयितुम् ) सुनने के लिये । Jain Education International निहरणं - (निर्हरणम् ) स्मशान यात्रा | निहाण नीणेइ हैं नीलुप्पलकया - ( नीलोत्पलकृतापीडै: ) जिसका छोगा नील कमल से बनाया हुआ हो । नेयाउयं ( नैयायिकम् ) न्याययुक्त | नेहित्ति - ( नयथ इति ) ले जाते हो । ( निधान ) संग्रह | ( नयति ) ले जाता पदपरिणामे पइरिक्कं पति के स्वभाव में 1 पक्केलयं - एकांत । पभोसे - ( प्रदोषे ) सायंकाल में ! पक्कीरमाणा - ( प्रकीर माणाः ) बिखेरते - डालते हुए । ( पक्वम् ) पका Tripapa For Private & Personal Use Only ( पतिपरिणामे ) हुआ । ( प्रतिरिक्तम् ) www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy