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४३. कम्पिल्लपुरे - देखो ‘भगवान महावीर नी धर्मकयाओ' का कोश ।
४४. पञ्चविहे ----' पञ्चविधान् '। रूप, रस, गंध, शन्द और स्पर्श इनसे उत्पन्न होनेवाले पांच प्रकार के विलास ।
४५. पञ्चाणुव्वइयं -“पञ्चाणुव्रतिकम्" । पांच अणुव्रतवाला । पांच अणुव्रत के लिये देखो 'भगवान महावीरना दश उपासको' का कोश ।
४६. सत्तसिक्खावश्यं -" सप्तशिक्षाव्रतिकं - सात शिक्षाव्रतवाला" । देखो 'भ. म. ना दश उपासको' का कोश ।
४७. चउद्दसमुदि -'चतुदशी-अष्टमी-उद्दिष्टापूर्णमासीपु-चौदश, आठम, अमावस और पूनम इन तिथियों में' (विशेप के लिये देखो 'भ. म. नी धर्मकथाओ' का कोश)।
४८. पोसह -'पोषधम् ' जैनधर्म में प्रचलित एक प्रकार का व्रत । विशेष के लिये देखो ‘भ. म. ना दश उपासको' का कोश ।
४९. फासुपसणिज्जेणं- 'प्रासुक-एषणीयेन - जिसमें नीवजंतु नहीं है ऐसा और जिसको शास्त्र के अनुसार बराबर खोजा गया है ऐसा । जैन श्रमणों को प्रासुक और एषणीय आहार मिले तो ही लेना अन्यथा नहीं, ऐसा शास्त्रीय विधान है।
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