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५०. गोसालस्त मललिपुत्तस्स - " गोशालस्यः मस्करिपुत्रस्य" । आजीवक संप्रदाय का एक प्रसिद्ध तीर्थकर । विशेष के लिये देखो 'भ. म. ना दश उपासको" का कोश ।
५१. उदाणे इ वा - " उत्थानमिति वा, कर्म इति वा, बलमिति वा, वीर्यमिति वा पुरुपकारपराक्रम इति वा" । गोशालक के संबंध में जैन और बौद्ध ग्रंथो में ऐसा कहा गया है कि वह नियतिवादी था । उसके नियतिवाद का स्वरूप जो उपलब्ध है वह इस प्रकार है:- वस्तुमात्र नियत है अर्थात् इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन कोई नहीं कर सकता है। इसी लिये गोशालक कहता है कि वस्तु का उत्थान-उत्पत्ति नहीं है। उसमें परिवर्तन करने के लिये कर्म का, बल का, वीर्य का, पौरुपपराक्रम का भी सामर्थ्य नहीं है। इसलिये गोशालक कहता है कि जगत में उत्थानादि वस्तु है ही नहीं, सब वस्तु नियत हैं, नियत थीं. और नियत रहेंगी; किसी को कोई दुःख या सुख नहीं दे सकता है और प्राणी जो दुःख या सुख भोगता है वह भी कोई कर्मकृत नहीं है, प्रत्युत नियत है। गोशालक के. संप्रदाय का दूसरा नाम आजीवक संप्रदाय भी है ।
५२. अजगं चेडगं -- "आर्यकं चेटकम् - पितामह अर्थात् दादा चेटक" । चेटक राजा वैशालिका था । वह गणसत्ताक राज्यों का मुखिया था । सूत्र में ऐसे अनेक: उल्लेख आते हैं कि काशी कोशल के नवमलकी (मल्ल)
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