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और कौन वृक्ष काण्डरोप्य है अर्थात् गाँठ से लगाया जाता है यह बात भी बताई गई है। इस विद्या में जो कुशल है उसको वृक्षायुर्वेदकुशल कहते हैं ।
३९. बहविय-" स्नापित - स्नान कराया हुआ" | हज्जाम अर्थात् नाई के अर्थ में प्राकृत में 'हाविय' और संस्कृत में तत्समान नापित शब्द का प्रयोग होता है । कोशकारों ने नापित' शब्द की व्युत्पत्ति कुछ और ही तरह से की है। परन्तु, जहाँ तक शब्द एवं अर्थ का सम्बन्ध है, वहां तक उपर्युक्त स्ना' धातु से सम्बन्ध रखनेवाली व्युत्पत्ति ही अधिक ठीक प्रतीत होती है । 'स्नान कराना' इस अर्थ में स्ना' धातु का प्रेरक प्रत्ययान्त 'स्नाप्' शब्द प्रयुक्त होता है । विचार करने से मालूम होगा कि इस प्रेरकान्त 'स्ना' धातु से ही पहाविय एवं नापित शब्द का उद्भव होना विशेष संगत है। क्योंकि आजकल भी नापित लोग स्नान कराने का काम करते हैं। बरात में वर को नापित ही स्नान कराता है। पुराने जमाने में भी इसी तरह की पद्धति थी ऐसा मालूम होता है। क्योंकि जैन आगमों में जहां शिरोमुंडन और उसके बाद शुद्ध होने की हकीकत का उल्लेख आता है वहाँ आलंकारिक शाला में नापित के पास जाने का उल्लेख मिलता है। नापित का दूसरा नाम आलंकारिक भी
४०. दिण्णवत्थजुयलो -- " दत्तवस्त्रयुगलः - जिसको दो वस्त्र दिये गये हैं"। भगवान महावीर के समय के
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