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त्याग) सब्बाओ मुसावायाओ बेरमणं, (सब प्रकार के असत्य का त्याग) सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, (सर्व प्रकार की चोरी का त्याग) सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, (सर्व प्रकार के मैथुन का त्याग) सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमण (सब प्रकार के परिग्रह का त्याग)। इसके अतिरिक्त सन्चाओ राइभोयणाओ वेरमणं (सर्व प्रकार के रात्रीभोजन का त्याग) भी बताया गया है। ऐसे व्रत वैदिक परंपरा में और बौद्ध परंपरा में भी हैं।
३३. छजीवनिकाएसु -" पड्जीवनिकायेषु -जीव के छ प्रकार के समूह में"। (१) पृथ्वीकाय-मिट्टी, (२) अप्काय-जल, (३) तेउकाय-तेज, अग्नि, (५) वाउकाय वायु, (५) वनस्पतिकाय-वनस्पति, (६) त्रसकाय-अन्य सब प्राणी, अळसिया से ले कर मनुष्य तक ।
__आचारांग सूत्र में (अध्य. १ उद्देश ६) अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, संमूर्छिम, उद्भिज, औपपातिक--- इस तरह से जीव के प्रकार अर्थात् भेद बताये गये हैं। ऐसे ही प्रकार अन्य दर्शनों में भी प्रसिद्ध है।
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३४. सावगाण-" श्रावकाणाम्"। श्रावक शब्द का सामान्य अर्थ 'सुननेवाला' होता है। लेकिन जैनशास्त्र में इसका अर्थ, जैनधर्म को पालनेवाला गृहस्थ है। इसके लिये दूसरा शब्द श्रमणोपासक भी है। श्रावक शब्द का प्रचार बौद्धग्रंथों में भी 'बुद्ध के उपासक' के अर्थ में आता है। स्त्री उपासकों को साविगा-श्राविका कहते हैं।
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