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'धम्मुणा' 'कम्मुणा' ऐसे तृतीयांतरूप भी आते हैं। पाली भाषा में भी ऐसे रूप होते हैं जैसे - कम्मुना, अधुना इ० ।
२५. लेस्साहि-संसार स्थित बद्ध आत्मा के एक प्रकार के अध्यवसाय को लेश्या कहते हैं। वे संख्या में छः है - कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म, शुक्ल । इनके स्वरूप को समझने के लिये यह एक उदाहरण है
(१) जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपनी सुखसुविधा के लिये हजारों प्राणियों को विवश रखें,- अर्थात् जिन प्राणियों के द्वारा वह स्वयं सुखसुविधा प्राप्त करता है, उन प्राणियों के सुख की जरा भी परवाह न करे, ऐसे मनुष्य की मनोवृत्ति को कृष्णलेश्या कह सकते हैं।
(२) जो मनुष्य अपने आराम में तो जरा भी कसर नहीं आने देता, परन्तु वह आराम जिन प्राणियों के शारीरिक श्रम से मिलता है, उनकी भी समय समय पर अजपोपण समान स्वार्थदृष्टि से कुछ सार संभाल लेता रहता है, इस मनुष्य की वृत्ति को नीललेश्या कहते हैं।
(३) जो व्यक्ति पूर्वोक्त न्याय से अपने सुखसंपादक परिश्रमजीवी प्राणियों की जरा और अधिक संभाल रखता है, ऐसे सुखैपी मनुष्य की चित्तवृत्ति को कापोतलेश्या कहते हैं।
___ इन तीनों चित्तवृत्तियों में प्राणियों के प्रति अकारण मैत्री की कल्पना तक नहीं होती। इनमें केवल स्वार्थ का ही निरंकुश शासन रहता है।
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