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४. जेणामेव -- येन एव --जेण एव'| "जिस तरफ" अर्थ का सूचक, विभक्त्यन्त प्रतिरूपक 'जेण' अव्यय है। उच्चार की सुगमता के लिये 'जेण एव' का 'जेणामेव' हो गया है। यह प्रयोग, प्राचीन प्राकृत में बहुत आता है ।
५. समणे भगवं- मागधी भाषा में पुलिंग में प्रथमा के एकवचन में 'ए' प्रत्यय लगता है। तदनुसार 'समण' (श्रमण) शब्द से यह 'समणे' बना है । आप प्राकृत में कोई कोई प्रयोग मागधी भाषा के भी आते हैं।
भगवं-शौरसेनी में (८-४-२६५) के अनुसार 'भवत्' और 'भगवत्' शब्द के प्रथमा के एकवचन में न् का मकार हो जाता है। तदनुसार इस रूप की उपपत्ति होती है । मागधी की तरह आर्पप्राकृत में कोई प्रयोग शौरसेनीका भी आता है।
६. तिक्खुत्तो-'वार' के अर्थ में 'कृदस्' प्रत्यय का प्रयोग संस्कृत में आता है। आचार्य हेमचन्द्र ने इसके वदले प्राकृत व्याकरण में (८-२-१५८ सूत्र में ) 'हुत्तं' का प्रयोग बताया है। 'तिक्खुत्तो' शब्द में 'खुत्तो' रूप 'कृत्वस्' का सरल उपचारांतर है। यह 'खुत्तो' 'हुतं' का पूर्ववर्ती उच्चार मालूम होता है- कृत्वस्-खुत्तो-हुत्तं । पाली भाषा में 'खुत्तो' के स्थान में "खत्तुं" का प्रयोग आता हैतिखत्तुं ।
७. आयाहिणं पयाहिणं-' आदक्षिणं प्रदक्षिणं' । पूज्य पुरुष के आसपास दाहिनि ओर से वांई ओर घूमना ---
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