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१. तते णं-जहां शब्द से नहीं जुडा हुआ 'ण' का प्रयोग आता है वहां वह अलंकार के लिये समझना । 'तते' शब्द का अर्थ " उसके वाद" है। इस शब्द की मूल प्रकृति 'त' (तत्) शब्द है । 'ततो' 'तओ' (ततः) के समान इसकी उपपत्ति मालूम होती है। कई जगह 'तते' के अर्थ में 'तए' का भी प्रयोग आता है। संभव है कि 'तया' तथा 'तइया' (तदा) का उच्चारांतर यह 'तए' हो ।
२. अम्मापियरो-"मातापिता" । मातावाचक 'अंबा' शब्द का यह 'अम्मा' शब्द भिन्न प्रकार का उच्चार है। जैसे 'अंब' का 'आम' (आन) उच्चारण होता है वैसे ही म् के साहचर्य सेब का भी 'म' उञ्चारण हो गया है। इस शब्द का प्रयोग माता अर्थ में पाली में भी आता है।
३. कट्ट-'कृत्वा' के अर्थ में यह आर्पप्रयोग है। व्याकरण के नियम से यह निष्पन्न नहीं होता है। परन्तु उच्चारण की दृष्टि से इसका पृथक्करण इस प्रकार हो सकता है । ‘कृत्वा'गत स्वरसहित व का संप्रसारण अर्थात् उकार करके उच्चारभार समान रखने के लिये तकार का द्वित्व हो गया है -कृत्वा-कत्त-कटु ।
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