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सेवयवज्जा
(१) जं सेवयाण दुक्खं चरित्तविवज्जियाण नरणाह ! | तं होउ तुह रिऊणं अहवा ताणं पि मा होठ ॥ १५१ ॥ (२) भूमिसयणं जरचीरबन्धणं बम्भचेरयं भिक्खा ।
मुणिचरियं दुग्गयसेवयाण धम्मो परं नत्थि ॥ १५२ ॥
(३) सन्चो छुहिओ सोहइ मढदेउलमन्दिरं च चच्चरयं । नरणाह ! मह कुडुम्बं छुछुहियं दुब्बलं होइ ॥ १६१ ॥ 1
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