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२६ सीहवज्जा
(१) किं करइ कुरङ्गी बहुसुएहि ववसायमाणरहिएहिं ।
एक्केण त्रि गयघडदारणेण सिंही सुहं सुबइ ॥ २००॥
(२) मा जाणह जइ तुङ्गत्तणेण पुरिसाण होइ सोण्डीरं । महोव मइन्दो करिवराण कुम्भत्थलं दलइ ॥ २०२ ॥
(३) बेण्णि वि रण्णुप्पन्ना वज्झन्ति गया न चेव केसरिणो । संभाविज्जइ मरणं न गञ्जणं धीरपुरिसाणं ॥ २०३ ॥
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