________________
दीणवज्जा (१) परपत्यणापवनं मा जणणि जणेसु एरिसं पुत्तं ।
उपरे वि मा धरिज्जसु पत्थणमङ्गो कओ जेण ॥ १३३ ॥ (२) ता एवं ताव गुणा लज्जा सच्चं कुलक्कमो ताव ।
__ ताव चिय अहिमाणो 'देहि' ति न भण्णए जाव॥१३॥ (३) तिणतूल पि हु लहुयं दीणं दइवेण निम्मियं भुवणे ।
वाएण किं न नीयं अप्पाणं पत्थणभएण || १३५ ॥ (१) थरथरथरेइ हिययं जीहा घोलेइ कण्ठमज्झम्मि ।
नासइ मुहलावणं 'दहि' त्ति परं भणन्तस्स ॥ १३६ ॥ (५) किसिणिजन्ति लयन्ता उदहिजलं जलहरा पयत्तण ।
धवलीहुन्ति हु देन्ता देन्त-लयन्तन्तरं पेच्छ ।। १३७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org