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The constitution of the universe, the movement of the stars, the power of the sun, the beauty of the moon, the creation of the world, the distribution of the elements, the punishment of the wicked, the protection of the righteous, the power of the mind, the knowledge of the soul, the liberation of the spirit - all these are but manifestations of the one supreme reality, the Jina. Like the vast expanse of the sky, the Jina is beyond comparison. He is the ultimate refuge, the source of all goodness, the embodiment of truth, the destroyer of all suffering. The Jina is praised by the gods and the sages, by the birds and the beasts, by the trees and the rivers. He is the one who guides us to the path of liberation, the one who shows us the way to true happiness. The Jina is the light that shines in the darkness, the hope that sustains us in despair, the love that conquers all. He is the one who teaches us to live in harmony with ourselves, with each other, and with the universe. Let us all strive to follow the path of the Jina, to live a life of compassion, of truth, and of love. Let us all strive to become like the Jina, to be a source of light and hope for all beings.
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________________ बसुछिसंविधान केशविलाचालणविष सवलदालंकेणविटाश्मन कोएविधाहरणित रमाकपविधावपारसाउं केणवितारणणिवहा पडिदारकाविडठदंडधलाकाविपासपा राहउखाकरू पडपटकाविणरायठ केणविमोलम्बाध्यकासविधालावणिणिहत) जदिक्षिणश्यहितदिकश्मण सरलयलिताडिदारणअणशाणिजावविजिपवरगुणचुणइत्या हिवसरक्यणाणावय अश्गुरुहकरदसमनणयणु आयामुग्रायासदासरिय उवमाए। पवनुकाविषरिसु जयईजेसमाणउपसणमि नापरमसाक्षियच्युपमिाहता जोकहरकरण करकवण जिपवरजहशुपाररासि साणिकलाएका करजुलुषणमूदमवजलयसिकाइहयोन बित्रयविनमवंदेमि अहमासधिनपणववेदेति धणलादलाइदिसाहित्यसंगहि परणारिहिसाब सार्णशिंगहि पसुमसमवृक्षरविलुहेहिं कुलनाशविणाणगाणबर्हि मयघुम्मिरकाहिमिठति हदहिं कहदाससर्तमहामाहादेहि असिवनडगमगलेघर्डताण नस्यमिधेतमहतपडताणाजमपानि णिमाडियार्णसवाहाण निणकाईकरावणदेश्देहाणा झणमाजयजम्मवायनिहतण चरमपर्यना कातपण जसकालकालागाजालावलाकरजयश्दनाश्यलकालथाकदजयधारसंसारकतारन प्रचुर पुण्य का संचय किया। किसी ने भावपूर्ण नृत्य किया। किसी ने विलेपन भेंट किया। किसी ने आभूषण दिये, किसी ने स्तोत्र शुरू किये, किसी ने तोरण बाँधे। कोई दण्डधारी प्रतिहारी बन गया। कोई हाथ में तलवार लेकर पास खड़ा हो गया। धर्मानुराग से युक्त कोई सुन्दर पढ़ने लगा। किसी ने माला ऊँची कर ली। किसी की वीणा स्निग्धतर हो उठी। जहाँ-जहाँ वह स्पर्श करता है वहीं मन हो जाता है। स्वर और अंगुलियों से ताड़ित वह रुनझुन करती है, निर्जीव होते हुए भी जिनवर के गुणों की स्तुति करती है। उस अवसर पर सहस्रनयन इन्द्र अपने नाना मुख बनाकर गुरु की स्तुति करता है, "आकाश आकाश के समान है, तुम्हारा उपमान कोई भी मनुष्य नहीं हो सकता। हे जिनवर, जब आप आपके ही समान कहे जाते हैं तो हे परमेश्वर, मैं आपकी क्या स्तुति करूँ? घत्ता-हे जिनवर, जो स्वनिर्मित काव्य से तुम्हारी गुणराशि का कथन करता है वह मूर्ख अत्यन्त छोटे हाथरूपी करछल से जलराशि को मापना चाहता है।॥ १८॥ हे जिनवर, तुम्हारे स्तवन के आचरण में मैं अपना नवीन चित्त देता हूँ। हे ईश, मैं धृष्टता से ही तुम्हारी बन्दना करता हूँ। जो धनलाभ के लालची, संगृहीत का संग्रह करनेवाले, पर-स्त्रियों की हिंसा और अपहरण से आनन्दित होनेवाले, पशुमांस और मद्य की जलधारा में लुब्ध होनेवाले, कुल-जाति और विज्ञान के गर्व से अवरुद्ध, मद से घूमती हुई आँखोंवाले, मिथ्यात्वपर चढ़े हुए और महामूढ़ हैं, उनके द्वारा वह कैसे देखा जा सकता है। असिपत्रों से दुर्गम अन्तराल में घटित होते हुए, महान्धकारमय नरक में पड़ते हुए, यम के पास से अत्यन्त पीड़ित और सब प्रकार से हीन शरीरधारियों के लिए हे जिन, कौन हाथ का सहारा देता है? मेरे इस जगजन्मवास को नष्ट कर, तुम्हें छोड़कर कौन मुझे परमपद में ले जा सकता है? कालरूपी कालाग्नि की ज्वालावली के लिए मेघतुल्य तुम्हारी जय हो। इन्द्रों और नागेन्द्रों की लक्ष्मीरूपी लता के अंकुर आपकी जय हो। संसार के घोर कान्तार से निस्तार दिलानेवाले आपकी जय हो; Jain Education Internation For Private & Personal use only
SR No.002738
Book TitleAdi Purana
Original Sutra AuthorPushpadant
Author
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year2004
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size147 MB
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