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The king, filled with wonder and joy, bowed down to the twenty lords of the mansions, seeing them, and praised the venerable monks with reverence. He sat near the feet of the venerable (Rishabha). Then he saw the chief Ganadhara Vrishabhasena. Then he saw the other Ganadharas, Yativrendra and the great sage, Kummbha. Then he saw the group of fortitude, the Ganadharas Shatrudaman, Devasharma, Shraman, Dhandev, Dharmanandan, Rishi Nandan, Yati Somadatta, Bhikshu Suradatta, the meditating Muni Vayusharma, Devagni and the best Agnidev, Muni Agnigupta and another Agni Gupta of the same lineage, Haladhar, Mahidhar, the brave Mahendra, Vasudev, Vasundhara, the immovable Meru, the knowledgeable, the one who should be known, the one who destroys the god of love, Muni Makar Ketu, the steady-minded, the pure, Dharitri Gupta, the one who protects all medicines, and Vijay Gupta.
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________________ तापुरुष अवलोय विश्वरविकावे ॥ ॥ गंधहपऊ समविसमरणामा रखस देसी महंती मादिपुन्न मणि लहणिया या हिमस्त्ववित्वमणिय तहि काल महाकाल विद्याथ दावियगेहिणि हेपिसायरायांचल वेराय ददे कडियू ना गिंद धरण परकिय प श्वेता लिएदेणदेव सोवापकु भारदे साकडेउ दीहिंदी वगरदावथख व्यहिहिजल के मुकुलख अमियाश्चमि वा हद हरिहरिकंत विद्यादामणीस गर्जतइतञ्चलि नीलदेह याणियाहिव महमदं तमग्निमिवमिहार्हविलंच पगापवण्णाद इयमेव विवासविसावर्णिद धम्माहिणं हवं दियमुदिता विलय पूरयहियेवल हरि सप्फुलिया क्यों जयजय पगीत जयनिवेण चउपिसियण पायपायणिय उयनि विदुः पुणु व सहसपुगपणाक दिहु अणुवीयनगणहरु अस्यरिंड अवलोकमहरिसिंड। दढरक दिदिपरिय रुतु दमण गणिदेवसम्मुधणदेउसम्म धम्मा दिइसिणं दणख नइसोम यसर लिख मुणिचान समुझावदिह देवग्निदेव विवरण (सरिश्रमिक गाव ते सन सत्रासच समहिंदरुमा दिदधारु वसुले संधायलमरु विस्मॉग विनुविषायणेन मुणिमटर केट मिरर थिर चित्रपयितुधरित्रिगृह सबलासदिय चु विचि नये सूर्य के समान छवि को देखा ॥ १ ॥ २ गन्धर्वो का समविषम नाम का राजा राक्षसों के भीम और अत्यन्त भीम, यक्षेन्द्र पुनः पुण्यभद्र और मणिभद्र कहे जाते हैं। भूतों के राजा रूप और विरूप हैं। पिशाचों में वहाँ काल और महाकाल राजा हैं। बल और वैरोचन दानवेन्द्र कहे जाते हैं नागराज धरणेन्द्र और फणीन्द्र भी बाकी नहीं बचे। स्वर्णकुमारों के सुख के कारण उनके राजा वेणुवलि और वेणुदेव हैं। द्वीपकुमार के दीपांग और दीपचक्षु हैं, समुद्रों में अलकान्त और जलप्रभ। दिक्कुमारों के अमितगति और अमितवाहन विद्युत्कुमारों के हरि और हरिकान्त । भ्रमर के समान कृष्णशरीर स्तनितों के देव मेघ और महन्तमेघ थे। अग्निज्वालाओं के अग्नि और अग्निदेव, पवनों के स्वामी बेलम्ब और प्रभंजन इस प्रकार बीस भवनवासी इन्द्रों को देखकर उन्होंने धर्म से अभिनन्दनीय मुनियों की वन्दना की। Jain Education International धत्ता आश्चर्य से भरे हुए हृदय और हर्ष से खिले हुए जय राजा जय जय कहते हुए तथा चारों ओर दृष्टि घुमाते हुए - ॥ २ ॥ ३ वह नाभेय (ऋषभ) के चरणों के निकट बैठ गया। फिर उसने प्रमुख गणधर वृषभसेन के दर्शन किये। फिर दूसरे गणधर यतिवरेन्द्र और महाऋषीन्द्र कुम्भ को देखा। फिर धैर्य के समूह शत्रुदमन गणधर देवशर्मा, श्रमण, धनदेव, धर्मनन्दन, ऋषिनन्दन, यति सोमदत्त, भिक्षु सुरदत्त, ध्यान में स्थित मुनि वायुशर्मा, देवाग्नि और वरिष्ट अग्निदेव, मुनि अग्निगुप्त और एक अन्य गोत्र के तेज अंशवाले अग्निगुप्त हलधर, महीधर, धीर माहेन्द्र, वसुदेव, वसुन्धर, अचल मेरु, विज्ञानवान, विज्ञाननेय, कामदेव को नष्ट करनेवाले मुनि मकरकेतु, स्थिर चित्त, पवित्र, धरित्रीगुप्त, सकल औषधिगुप्त और विजयगुप्त भी. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002738
Book TitleAdi Purana
Original Sutra AuthorPushpadant
Author
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year2004
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size147 MB
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