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________________ आठवां पर्व उग्र शब्दसे इन्यादि क भगानक शब्दास रणभूमि गाज रही हैं, परती प्रकाश शब्दायमान होंग रहे हैं, वीर रका राग होय है, योषाओंके. मर चढ़ रहा है, यम बदन समान चक्र तीक्षा है धारा जिनीअर यमकी जीभ र.म. र डा रु की बारा वर्षा नहारी र यमके रोम समान सेल अर यमकी प्रांगु समान सर (वाण) र यमझी भुजा समान परिघ (कुहाड़ः) अर यमकी मुष्टि समान मुदगर इत्यादि अनेक शस्त्रोमे परस्पर महायुद् प्रवरना कायरों की बात अर योथाओंको हर्ष उपजा । मामन निरके बदले यशरूप धनको होते हैं। अनेक राक्षस अर कपि जातिके विद्य धर अर यज्ञ जातिके विद्याधर परस्पर युवर परलोकको प्राप्त भए। कुछ इक यक्षोंके आगे राक्षस पीछे हटे तब रावण अपनी सेनाको दवी देख आप रण संग्रमको उद्यमी भए । कैसे हैं रवण महामनोज्ञ सफेद छत्र सिरपर फिरे हैं जाके, काल मेघ समान चन्द्र मंडलकी कान्तिका जीतनेवाला रावण धनुप वाण धाः, इ.द्र धनुषसमान अनेक रंगका वकतर पहिरे, शिरपर मुकुट धरे, नाना प्रकार के रत्नोंके प्राभूपण संयुक्त, अपनी दीप्तिो आकाशमें उद्योत करता आया रावणको देखकर यज्ञ जाजिक विद्य पर क्षण मात्र विलसे, तेन दूर होगया, रणी अभिलाषा छोड़ पर ङमुख भए, त्र-ससे प्राकृतिा है चित्त जिना, भ्ररकी म्याई भ्रमते मए । तब यक्षोंके अधिपति बड़े २ योद्धा एक बोर रावण के म मुख आए गवण सबके छेदने को प्रदरता जैसे सिंह उछलकर माले हाथियोंक, कुम्भस्दल विदरे ते राण कोपरुप. पनके प्रेरे अग्नि स्वरूप होवर शत्रुसेरूपी बनको दाह उपना भए । सो पुरुष नहीं, सो रथ नहीं, सो अश्व नहीं, सो विमान नहीं, जो राः के बाणोंसे न बींधा गया। तब रावणाको रामें देख वैश्रवण भाईपनेका स्नेह जनावता भया पर अपने मनमें पछताया जैसे वाहूबल भरतसे हड़ई कर पछताए हुते तैसे वैश्रयण रावणासे विरोध कर पछताया। हाय ! यह सं र दुःखमा भाउन है जहां यह प्राणी नाना योनियोंदिभ्रमण करे हैं। देखो ; मैं मूर्ख ऐश्वर्यसे गावित होकर भाईके विध्वंस करने में प्रदरता। यह विचार कर वैयण र वण से कहता भया—'हे दशानन; यह राजलक्ष्मी क्षणभंगुर है, इसके निमित्त तू कहा पाप करै । मैं तेरी बड़ी मौसीका पुत्र हूं ताते भाइयोंसे अयोग्य व्यवहार करना योग्य नहीं अर यह जीव प्राणियों की हिंसा करके महा भयानक नरकको प्राप्त होय है, नरक महा दुःख से भरा है। जगतकेजी। विपी अभिलाषामें फंसे हैं आंखोंकी पलकमात्र क्षण जीवना क्या तू न जाने है । भौगोंके कारण पाप कर्म काहेको करे है। तब रावणने कहा-'हे वैश्रवण ; यह धर्म श्रवणका समय नहीं जो माते हाथियोंपर चढ़ कर खड़ग हाथमें धरै सो शत्रुवोंको मारै तथा आप मरे बहुत कहनेसे क्य. ? तू तलवारके मार्गविष विष्ट अथवा मेरे पांव पड़। यदि तू धनपाल है तो हमारा ण्डारी हो अपना कर्म करते पुरुष लज्जा न करै । तब वैश्रवण वोले-'हे रावण : तेरी आयु अल्प है तातें ऐसे क्रूर वचन कहे है। शक्ति प्रमाण हमारे ऊपर शस्त्रका प्रहार कर। तब रावणने कही-तुम बड़े हो प्रथम वार तुम करो। तब रावणके ऊपर वैश्रवणने बाण चलाये-जैसे पहाड़के ऊपर सूर्य किरण डारे। वैश्रवणके बाण रावणने अपने बाणोंसे काट डारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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