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________________ ७२ पद्म पुराण होती भई, नवमे महीने रावण का जन्म भया जिस समय पुत्र जम्मा उस समय बैरियोंके आसन कम्पायमान भए मूर्य समान है ज्योति जिसकी ऐसा बालक उसको देखकर परिवारके लोकोंके नेत्र थकित होय रहे । देव दुन्दुभी बाजे बजाने लगे, बैरियोंके घरमें अनेक उत्पात होने लगे, माता पिताने पुत्रके जन्मका अति हर किया प्रजाके सर्व भय मिटे पृथ्वीका पालक उत्पन्न भया सेजपर सूधा पड़े अपनी लीलाकर देवोंके समान है दर्शन जिसका । राजा रत्नश्रवाने बहुत दान दिया । आगे इनके बड़े जो राजा मेघवाहन भये उनको राक्षसोंके इन्द्र भीमने हार दिया था जिसकी हजार नागकुमार देव रक्षा करें वह हार पास थरा था सो प्रथम दिवस हीके बालकने बैंच लिया वालककी मुट्ठीमें हार देख पाता आश्चर्यको प्राप्त भई अर महा स्नेहसे बालकको छातीसे लगाय लिया अर सिर चूमा अर पिताने भी हारसहित बालकको देख मनमें विचारी यह कोई महापुरुष है, हजार नागकुमार जिसकी सेवा करें ऐसे हारसे क्रीड़ा करता है । यह सामान्य पुरुष नाही याकी शक्ति ऐसी होयगी जो सर्व मनुष्यों को उलंघे। आगे चारण मुनिने मुझे कहा हुता कि तेरे पदवीधर पुत्र उत्पन्न होंगे सो आप प्रतिवासुदेव शलाका पुरुष प्रकट भये हैं। हारके योगसे दश वदन पिताको नजर आये तब उसका दशानन नाम धरा, बहुरि कुछ कालमें कुम्भकर्ण भये सो सूर्य समान है तेज जिसका, बहुरि कुछ इक कालमें पूर्णमासींके चन्द्रमा समान है :दन जिमका ऐनी चन्द्रनखा बहिन भई, बहुरि विभीषण भये महासौम्य धर्मात्मा पाप कर्मरहित मानों साक्षात् धर्म ही देहधारी अवतरा है। अद्यापि जिनके गुणोंकी कीर्ति जगतविपै गाइये हैं । ऐसे दशाननकी वालनीडा दुष्टोंको भयरूप होती भई । अर दोनों भाइयोंकी क्रीड़ा सौम्यरूप होती भई। कुम्भकर्ण अर विभीषण दोनोंके मध्य चन्द्रनखां चांद सूर्यके मध्य सन्ध्या समान शोभती भई । रावण बाल अवस्थाको उलंघकर कुमार अवस्थामें आया। एक दिन रावण अपनी माताकी गोदमें तिष्ठे था, अपने दांतोंकी कांतिसे दशों दिशामें उद्योत करतः हुश्रा जिसके सिरपर चूडामणि रत्न धरा है उस समय वैश्रवण श्राकाश मार्गसे जाय था सो रावणके ऊपर होय निकला अपनी कांतिसे प्रकाश करता हुआ विद्याधरोंके समूहसे युक्त महा बलान विभूतिका धनी, मेघ समान अनेक हाथियोंकी घटा मदकी धारा घरसाते जिनके बिजली सनान सांकल चमकै, महा शब्द करते आकाश मार्गसे निकसे सो दशों दिशा शब्दायमान होय गई। आकाश सेनासे व्याप्त हो गया । सो रावणने ऊंची दृष्टिकर देखा तो बड़ा आडम्बर देखकर माताको पूछा “यह कौन है ? अर अपने मानसे जगतको तृण समान गिनता महा नासहित कहां जाय हे ?" तर माता कहती भई "तेरी मौसीका बेटा है, सर्व विद्या इसको सिद्ध हैं, महा लक्ष्नीवान है, शत्रुओंके भय उपजावता हुआ पृथ्वीविष विचरे है, महा तंजवान है, मानो दूसरा सूर्य ही है । ९.ना इन्द्रका लोकपाल हैं । इन्द्रने तुम्हारे दादा का बड़ा भाई माली युद्ध में हराया पर तुम्हारे कुल में चली आई जो लंकापुरी वहांसे तुम्हारे दादेको निकालकर इसको रखा है। इस लंकाके लिये तेरा पिता निरन्तर अनेक मनोरथ करै हैं रात दिन चैन नहीं पड़े है अर मैं भी इस चिंतामें मुखाई हूँ। हे पुत्र ! स्थानभ्रष्ट होनेते मरण भला! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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