SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकसौतेईसवा पर्व नामा चक्रवर्ती होयगा तब वे सातवें स्वर्गसे चयकर तेरे पुत्र होवेंगे रावणके जीवका नाम तो इन्द्ररथ अर वसुदेवके जीव का नाम मेघरथ दोनों महाधर्मात्मा होवेंगे परस्पर उनमें अतिस्नेह होयगा अर तेरा उनसे अतिस्नेह होयगा जिस रावणने नीतिसे तीन खंड पृथिवीका अखंड राज्य किया अर ये प्रतिज्ञा जन्मपर्यत निभाई जो परस्त्री मोहि न इच्छे ताहि मैं न सेऊ सो रावणका जीव इन्द्ररथ धर्मात्मा कैयक श्रेष्ठ भव थार तीर्थंकर देव होयगा तीनलोक उसको पूजेंगे अर तू चक्रवर्ती राज्यपद त मुनिव्रतधारी होय पंचोत्तरों में वैजयंत नामा विमान तहा तपके प्रभावसे अहमिन्द्र होवेगा तहांसे चयकर रावणका जीव तीर्थकर उसके प्रथम गणधर होय निर्वाण पद पावेगा। यह कथा श्रीभगवान राम केवली तिनके मुख प्रतीन्द्र सुनकर अति हर्षित भया बहुरि सर्वज्ञदेवने कही-हे प्रतीन्द्र ! तेरा चक्रवर्ती पदका दूजा पुत्र मेघरथ सो कैयक महाउत्तम भवधर धर्मात्मा पुष्कर द्वीप महा विदेह क्षेत्रमें शतपत्र नामा नगर तहां पंचकल्याणकका धारक तीर्थकर देव चक्रवर्ती पदको धरे होयगा संसारका त्यागकर केवल उपजाय अनेकोंको तारेगा पर आप परमधाम पधारेगा, ये वासुदेवके भव तोहि कहे अर मैं अब सात वर्षमें आयु पूर्णकर लोक शिखर जाऊंगा जहांसे बहुरि आना नाही, अर जहां अनंत तीर्थकर गए अर जावेंगे अनंत केवली तहां पहुंचे जहां ऋषभादि भरतादि विराजे हैं अविनाशी पुर त्रैलोक्यके शिखर है, जहां अनन्तसिद्ध हैं, वहां मैं तिष्ठेगा, ये वचन सुन प्रतींद्र पद्म नाम जे श्रीरामचन्द्र सर्वज्ञ वीतराग तिनको बार२ नमस्कार करता भया पर मध्यलोकके सर्व तीर्थ बन्दे भगवानके कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पर निर्वाणक्षेत्र वहां सर्वत्र पूजाकर अर नन्दीश्वरद्वीपमें अंजनिगिरि दधिमुख रतिकर तहां बडे विधानसे अष्टाह्निकाकी पूजा करी, देवाधिदेव जे अरहंत सिद्ध तिनका ध्यान करता भया, अर केवलोके वचन सुन जैसा निश्चय भया जो मैं केवली होय चु का अल्प भव हैं अर भाईके स्नेह से भोगभूमिमें जहां भामण्डलका जीव है तहां उसे देखा अर उसको कल्याणका उपदेश दीया अर बहुरि अपना स्थान सोलवां स्वर्ग वहां गया जाके हजारों देवांगना तिनसहित मानसिक भोग भोगता भया । श्रीरामचन्द्र की सतरह हजार वर्ष की आयु सोलह धनुषकी ऊंची काया कैयक जन्मके पापोंसे रहित होय सिद्ध भये वे प्रभु भव्यजीवोंको कल्याण करो जन्म जरा मरण महारिपु जीते परमात्मा भए जिनशासनमें प्रगट है महिमा जिनकी जन्म जरा मरणका विच्छेदकर अखंड अविनाशी परम अतींद्रिय सुख पाया सुर असुर मुनिवर तिनके जे अधिपति तिनकर सेयवे योग्य नमस्कार करने योग्य दोषोंके विनाशक पच्चीसवर्ष तपकर मुनिव्रतपाल केवली भए सो आयु पर्यंत केवली दशामें भव्योंको धर्मोपदेश देय तीन भवनका शिखर जो सिद्धपद वहां सिधारे। सिद्धपद सकल जीवोंका तिलक है राम सिद्ध भए तुम रामको शीस निवाय नमस्कार करो राम सुरनर मुनियों कर आराधवे योग्य शुद्ध हैं भाव जिनके संसारके कारण जे रागद्वेष मोहादिक तिनसे रहित हैं परम समाधिके कारण हैं अर महा मनोहर हैं, प्रतापकर जीता है तरुण सूर्यका तेज जिनने पर उन ऐसी शरदकी पूर्णमासीके चन्द्रमामें कांति नहीं सर्व उपमारहित अनु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy