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________________ पी-पुराण जिसके पुत्र राजावोंके तुल्य पराक्रमी सो कुलपतिने सुनी सीताको वनमें निकासी तब उसने विचारी वह महागुणवती शीलवती सुकुमार अंग निर्जन वनमें कैसे अकेली रहेगी। धिक्कार है संसारकी चेष्टाको, यह विचार दयालुचित्त होय धु ति भट्टारकके समीप मुनि भया अर उसके दोय पुत्र एक अशोक दूजा तिलक यह दोनों मुनि भए सो द्यु ति भट्टारक तो समाधि मरख कर नववयकमें अहमिन्द्र भए अर यह पिता पुत्र तीनों मुनि ताम्रचूडनामा नगर वहां केवली की वंदनाको गए सो मार्गमें पचास योजनकी एक अटवी वहां चातुर्मासिक आय पडा सब एक वृक्षके तले तीनो साधु विराजे मानों साक्षात् रत्नत्रय ही हैं वहां भामंडल आय निकसा अयोध्या आवे था सो विषम वनमें मुनिनको देख विचार किया, यह महापुरुष जिन सूत्रकी अाज्ञा प्रमाण निर्जन वनमें विराजे चौमासे मुनियों का गमन नाहीं अब यह आहार कैसे करें तब विद्या की प्रबल शक्ति कर निकट एक नगर वसाया जहां सब सामिग्री पूर्ण बाहिर मानाप्रकारके उपवन सरोवर अर थानके क्षेत्र पर नगरके भीतर बडी बस्ती महासंपत्ति, चार महीना आपभी परिवार सहित उसनगरमें रहा अर मुनियोंके वैयाव्रत किये, वह वन ऐसा था जिसमें जल नहीं सो अद्भुत नगर बसाया, जहां अन्नजलकी बाहुल्यता सो नगरमें मुनिनका आहार भषा अर और भी दुखित भुखित जीवोंको भांति २ के दान दीए, अर सुन्दर मालिनी राणी सहित आप मुनियोंको अनेकवार निरंतराय आहार दीया, चतुर्मास पूर्ण भए मुनि विहार करते भए अर भामंडल अयोध्या प्राय फिर अपने स्थानक गया एक दिन सुन्दरमालिणी राणी सहित सुखसे शयन करै था सो महल पर विजुरी पडी राजा राणी दोनों मरकर मुनिदानके प्रभावसे सुमेरु पर्वतकी दाहिनी ओर देवकुरु भोगभूमि वहां तीन पन्यके आयुके भोक्ता युगल उपजे, सो दानकं प्रभाव से सुख भागवे हैं जे सम्यक्त्व रहित हैं अर दान करे हैं सो सुपात्र दानके प्रभावसे उत्तमगतिके सुख पावे हैं सो यह पात्रदान महा सुखका दाता है ग्रह बात सुन फिर प्रतींद्रने पूछी हे नाथ रावण तीजी भूमिसे निकस कहां उपजेगा पर मैं स्वर्गसे चयकर कहां उपजूगा मेरे अर लदमणके अर रावणके केते भव वाकी हैं सो कहो। तब सर्वज्ञदेवने कही--हे प्रतीन्द्र सुन, वे दोनों विजयावती नगरीमें सुनंद नामा कुटुम्बी सम्यकदृष्टि उसके रोहिणी नामा भार्या उसके गर्भ में अरहदास ऋषिदास नामा पुत्र होवेंगे महा गुणवान निर्मलचित्त दोनों भाई उत्तम क्रियाके पालक श्रावकके व्रत आराध समाधिमरण कर जिनसजका ध्यान धर स्वर्गमें देव होयगे तहां सागरांत पयंत सुख भोग स्वर्गसे चयकर बहुरि वाही नगरमें बडे कुल में उपजेगे सो मुनिनिको दान देय कर हरिक्षेत्र जो मध्यम भोग भूमि वहां युगलिया होय दोय पल्यकी आयु भोग स्वर्ग जाबेंगे बहुरि उसही नगरमें राजा कुमारकीर्ति राणी लक्ष्मी तिनके महा योधा जयकान्त जयप्रभ नामा पुत्र होवेगें बहुरि तपकर सातवें स्वर्ग उत्कृष्ट देव होंवेंगे, देवलोकके महासुख भोगेंगे अर तू सोलवां अच्युत स्वर्ग वहांसे चयकर या भरतक्षेत्रमें रत्नस्थलपुर नामा नगर वहां चौदह रत्नका स्वामी पटखंड पृथिवीका धनी चक्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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