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एकitaseat of
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है आत्मा जाकात सिद्ध साधु जिनधर्मके शरण में तत्पर है मन जाका तीन वेर पंच मेरुकी प्रदक्षिणा कर चैत्यालयोंका दर्शन कर नारकीनके दुखसे कंपायमान है चित्त जाका स्वर्ग लोक में हू भोगाभिलाषी न भया मानों नारिकीनिकी ध्वनि सुनै है, सोलमें स्वर्गके देवको छठे नरक लग
विज्ञान कर दीखे हैं तीजे नरकमें रावणके जीवको अर शंबूकका जीव जो असुरकुमार देव था ताहि संबोध सम्यक्त्व प्राप्त कराया । हे श्रेणिक ! उत्तम जीवोंसे परउपकार ही बने बहुरि स्वर्ग लोकसे भरत क्षेत्र में श्रीरामके दर्शन को आए पवन से हु शीघ्रगामी जो विमान तामें आरूढ
नेक देवोंको संग लिये नाना प्रकारके वस्त्र पहिरे हार माला झुकुटादिक कर मंडित शक्ति गदा खड्ग धनुष बरी शतघ्नी इत्यादि अनेक आयुधोंको धरे गज तुरंग सिंह इत्यादि अनेक वाहनों पर चढ़े मृदंग बांसुरी वीण इत्यादि अनेक वादित्रनिके शब्द तिनकर दशों दिशा पूर्ण करते केवीके निकट आए। देवोंके वाहन गज तुरंग सिंहादिक तियंच नहीं देवोंकी विक्रिया है । श्रीराम को हाथ जोड सीस निवाय बारंबार प्रणामकर सीताका जीच प्रतींद्र स्तुति करता भया हे संसारसागरके तारक, तुमने ध्यानरूप पवन कर ज्ञानरूप अग्नि दीप्त करी, संसाररूप वन भस्म किया और शुद्ध लेश्या रूप त्रिशूल कर मोहरिपु हता, वैराग्यरूप वज्र कर दृढ स्नेहरूप पिंजरा चूर्ण किया । हे नाथ हे मुनींद्र हे भवसूदन संसाररूप वनसे जे डरे हैं तिनको तुम शरण हो । हे सर्वज्ञ कृतकृत्य जगतगुरु पाया हैं पायवे योग्यपद जिन्होंने, हे प्रभो मेरी रक्षा करो संसारके भ्रमण से अति व्याकुल हैं मन मेरा तुम अनादि निधन जिनशासनका रहस्य जान प्रबल तप कर संसार सागर से पार भए, हे देवाधिदेव यह तुमको कहा युक्त ? जो मुझे भव वनमें तज आप अकेले त्रिमल पदको पधारे, तब भगवान कहते भए - हे प्रतींद्र तू राग तज जे वैराग्यमें तत्पर हैं तिन ही को मुक्ति है। रागी जीव संसारमें डूबे है जैसे कोई शिलाको कंठमें जाव कर नदी को नही तिर सके तैसे रागादिके भार कर चतुर्गतिरूप नदी न तिरी जाय, जे ज्ञान वैराग्य शील संतोष के धारक हैं वेई संसारको तिरें हैं जे श्रीगुरुके वचन कर श्रात्मानुभव के मार्ग लगे वेई भव भ्रमणसे छूटे और उपाय नाहीं काहूका भी लेजाया लोकशिखर न जाय एक वीतराग भाव ही से जाय । इस भांति श्रीराम भगवान सीताके जीवको कहत भए, सो यह वार्ता गौतमस्वामीने श्रेणिकसे कही बहुरि कहते भए हे नृप सीताके जीव प्रतींद्रने जो केवली से पूछी अर इनने कहा सो तू सुन, प्रतींद्र ने पूछी हे नाथ दशरथादिक कहांगए और लवण अंकुश कहां जावेंगे तब भगवान ने कही दशरथ कौशल्या सुमित्रा के कई सुप्रभा श्रर जनक कार जनकका भाई कनक यह सब तपके प्रभावकर तेरहवें देवलोक गए हैं यह सब ही समान ऋद्धिके धारी देव है भर लवणांकुश महाभाग्य कर्मरूप रजसे रहित होय विमल पद को इस ही जन्म से पावेंगे, इसी भांति केवली की ध्वनि सुन भामण्डलकी गति पूछी, हे प्रभो भामंडल कहां गया, तब आप कहते भए हे प्रतींद्र तेरा भाई राणी सुन्दरमालिनी सहित मुनिदान के प्रभाव कर देवकुरु भोगभूमि में तीन पल्य की आयुके भोक्ता भोगभूमिया भए तिनक दानकी वार्ता सुन- अयोध्या में एक बहु कोटि धनका धनी सेठ कुलपति उसके मकरा नामा स्त्री
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