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________________ पभ-पुर करावता सो भी दास होय जाय है तब पायोंकी लातोंसे मारिये है, हे प्रभो ! मोहकी शक्ति देखो इसके वश भया यह जीव आपको नहीं जाने है परको आप माने है, जैसे कोई हाथकर कारे नागको गहे तैसे कनक कामिनीको गहे है इस लोकाकाशमें ऐसा तिलमात्र क्षेत्र नाहीं जहां जीवने जन्म मरण न किए अर नरकमें इसको प्रज्वलित ताम्बा प्याया अर एती वार यह नरकको गया जो उसका प्रज्वलित ताम्रपान जोडिये तो समुद्र के जलसे अधिक होय पर सूकर कूकर गर्दभ होय इस जीवने एता मलका आहार कीया जो अनन्त जन्मका जोडिए तो हमारों विंध्याचलकी राशि से अधिक होय अर या अज्ञानी जीवने क्रोधके वशसे एते पराए सिर छेदे पर उन्होंने इसके छेदे जो एकत्र करिए तो ज्योतिष चक्रको उलंघ कर यह सर अधिक होवें यह जीव नरक प्राप्त भया वहां अधिक दुख पाया निगोद गया वहां अनन्त काल जन्म मरण किए यह कथा सुनकर कोन मित्र से मोह माने एक निमिष मात्र विषयका सुख उसके अर्थ कौन अपार दुख सहे, यह जीव मोहरूप पिशाच के वश पडा उन्मत्त भया ससार वनमें भटके है । हे श्रेणिक ! विभीषण रामसे कहे हे हे प्रभो ! मह लक्ष्मणका मृतक शरीर तजवे योग्य है । अर शोक करना योग्य नाहीं यह कलेवर उर सेलगाय रहना योग्य नाही, या भांति विद्याधरनिका सूर्य जो विभीषण उसने श्रीरामसे विनती करी अर राम महा विवेकी जिनसे और प्रति बुद्ध होय तथापि मोहके योगसे लक्ष्मणकी मूर्तिको न वजी जैसे विनयवान गुरु की आज्ञा न तजै। इति श्रीरविषणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ ताकी भाषावचनिकाविौं लक्ष्मणका बियोग रामका बिलाप अर विभीषणका संसारस्वरूप वर्णन करनेवाला एकसौ सत्रहवा पर्ण पूर्ण भया ।। ११७ ।। अथानन्तर सुग्रीवादिक सब राजा श्रीरामचन्द्रसे वीनती करते भये अब वासुदेवकी दग्ध क्रिया करो तब श्रीराम को यह वचन अति अनिष्ट लगा अर क्रोध कर कहते भए तुम अपने माता पिता पुत्र पौत्र सबोंकी दग्ध क्रिया करो, मेरे भाईकी दग्ध क्रिया क्यों होय जो तुम्हारा पापियोंका मित्र बन्धु कुटुम्ब सो सब नाशको प्राप्त होय मेरा भाई क्यों मरे उठो उठो लक्ष्मण इन दुष्टिनके संयोगते और ठौर चले जहां इन पापिनके कटु वचन न सुनिये ऐसा कह भाईको उरसे लगाय काधे धर उठ चले विभीषण सुग्रीवादिक अनेक राजा इनकी लार पीछे २ चले आवें राम काहूका विश्वास न करें। भाईको कांधे धरें फिरें जैसे बालकके हाथ विषफल आया पर हितू छुडाया चाहे वह न छोडे तैसे राम लक्ष्मणके शरीरको न छोडे आंसूनिकर भीग रहे हैं नेत्र जिनके भाईसे कहते भए -हे भ्रात ! अब उठो बहुत बेर भई ऐसे कहा सोवो हो अब स्नानकी बेला भई स्नान के सिंहासन बिराजो ऐसा कह मृतक शरीरको स्नानके सिंहासनपर बैठाया अर मोह का भरा राम मणि स्वर्णके कलशोंसे भाईको स्नान करावता भया अर मुकुट आदि सर्व आभूषण पहिराये पर भोजनकी तैयारी कराई सेवकों को कही नाना प्रकार रत्न स्वर्णाके भाजनमें नाना प्रकारका भोजन ल्यावो उसकर भाईका शरीर पुष्ट होय सुन्दर भात दाल फुलका नानाप्र. कारके व्यंजन नाना प्रकारके रस शीघ्र ही ल्यावो यह आज्ञा पाय सेवक सब सामिग्री कर लाये नाथके आज्ञाकारी तब आप रघुनाथ लक्ष्मणके मुख में ग्रास देंय सो न असे जैसे अभव्य जिनराजका उपदेशन ग्रहै तब आप कहते भए जो तैने मोसे कोप किया तो आहारसे कहा कोप ! आहार तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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