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एकसौअठारहवां पर्ण करो मोसे मत बोलो जैसे जिनवाणी अमृत रूप है परन्तु दीर्घ संसारीको न रुचे तैसे वह अमृतमई आहार लक्ष्मणके मृतक शरीरको न रुचा फिर रामचन्द्र कहे हैं-हे लक्ष्मीधर यह नानाप्रकारकी दुग्धादि पीवने योग्य वस्तु सो पीवो ऐमा कह भाईको दग्धादि प्याया चाहे सो कहा पीवे । यह कथा गौतम स्वामी श्रेणिकसे कहे हैं वह विवेकी राम स्नेह कर जैसी जीवतेकी सेवा करिये सैसी मृतक भाईकी करता भया अर नाना प्रकारके मनोहर गीत वीण बांसुरी आदि नाना प्रकारके नाद करता भया सो मृतकको कहा रुचे ? मानों मरा हुआ लक्ष्मण रामका संग न तजता भया । भाईको चन्दनसे चर्चा भुजाओंसे उठाय लेय उरसे लगाय सिर चुम्बे मुख चुम्बे हाथ चुम्बे अर कहे है-हे लक्ष्मण यह क्या भया तू तो कभी ऐमा न सोवता अब तो विशेष सोवने लगा अब निद्रा तजो या भांति स्नेह रूप ग्रहका ग्रहा वलदेव नाना प्रकारकी चेष्टा करै । यह वृत्तांत सघ पृथ्वीमें प्रकट भया कि लक्ष्मण मूवा लवण अंकुश मुनि भये पर राम मोहका मारा मूढ होय रहा है तब वैरी क्षोभको प्राप्त भये जैसे वर्षाऋतुका समय पाय मेघ गाजे शंबूकका भाई सुन्दर इसका नंदन विरोधरूप हैं चित्त जिसका सो इन्द्रजीतका पुत्र वज्रमाली पै पाया पर कही मेरा बाबा अर दादा दोनों लक्ष्मणने मारे सो मेरा रघुवंशिनिसे वैर है अर हमारा पाताल लंकाका राज्य लिये अर विराधितको दिया अर वानरवंशियोंका शिरोमणि सुग्रीव स्वामी द्रोही होय रामसे मिला सो राम समुद्र उलंघ लंकाआये राक्षस द्वीप उजाडा रामको सीताका अतिदुख सोलंका लेयवेका अभिलाषी भया सिंहवाहिनी अर गरुड वाहिनी दोय महा विद्या राम लक्ष्मणको प्राप्त भई तिनकर इन्द्रजीत कुम्भकर्ण बन्दीमें किये पर लक्ष्मण के चक्र हाथ आया उसकर रावणको हता अब काल चक्र कर लक्ष्मण मूवा सो वानरवंशियों की पक्ष टूटी वानरवशी लक्ष्मण की भुजावोंके आश्रयसे उन्मत्त होय रहे थे प्रब क्या करेंगे वे निरपक्ष भये अर रामको ग्यारह पक्ष होय चुके बारहवां पक्ष लगा हैं सो गहला होय रहा है भाईके मृतक शरीरको लिये फिर हैं ऐमा मोह कौनको होय ? यद्यपि राम समान योथा पृथ्वीमें और नहीं बह हल मूशलका धरणहारा अद्वितीय मल्ल हैं तथा भाईके शोक रूप कीचमें फंसा निकसवे समर्थ नहीं सो अव रामसे वैर भाव लेनेका दाव है जिसके भाई ने हमारे वंशके बहुत मारे शंबूकके भाईके पुत्रने इन्द्रजीतके बेटे को यह कहा सो क्रोधकर प्रज्व. लित भया मंत्रियोंको आज्ञा देय रणभेरी दिवाय सेना मेली कर शंबूकके भाईके पुत्र सहित अयोध्याकी ओर चला सेना रूप समुद्र को लिए प्रथम तो सुग्रीव पर कोप किया कि सुग्रीवको मार अथवा पकड उसका देश खोंसले बहुरि रामसे लडे यह विचार इन्द्रजीत के पुत्र बज्रमालीने किया सुन्दरके पुत्र सहित चढ़ा तब ये समाचार सुन कर सर्व विद्याधर जे रामके सेवक थे वे रामचन्द्रके निकट अयोध्यामें आय भेले भए जैसी भीड अयोध्यामें लवण अंकुशके प्रायवेके दिन भई थी तैसी भई । वैरियोंकी सेना अयोध्याके निकट आई सुन कर रामचन्द्र लक्ष्मणको कांधे लिये ही धनुष बाण हाथ में समारे विद्याधरनिकोको संग लेय आप बाहर निकसे उस समय कृतांतवक्रका जीव अर जटायु पत्तीका जीव चौथे स्वर्ग देव भए थे तिनके आसन कम्पायमान भए, कृतांतवक्रका जीव स्वामी पर जटायु पक्षी का जीव सेवक सो कुतांतवक्र का जीव जटायुके जीवसे कहता भया
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