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________________ एक मौपांचवां प ५४ सूक्ष्म र वैक्रियकसे आहारक सूक्ष्म हारकतें तैजस सूक्ष्म पर तैजसतै कार्म्मण सूक्ष्म सो मनुष्य अर तियंचनिके तो औदारिक शरीर है और देवनारकिनिके वैक्रियक है भर आहारक ऋद्धिधारी मुनिनिके संदेह निवारिवेके अर्थ दममे द्वारसे निकसे है सो केवलीकै निवट जाय सदेह निवार पीछा आय दशमे द्वारमें प्रवेश करे है, ये पांच प्रकारके शरीर व हे तिनमें एक काल एक जीवके कबहू चार शरीर हू पाइये ताका भेद सुनहु — तीन तो सब जीवनिके पाइये, नर अर तिर्यंचके श्रदारिक अर देव नारकनि वैयिक थर तैजस कार्म्मण सवोंके हैं तिनमें कार्म्मण तो दृष्टि गोचर नाहीं तैजस काहू मुनिके प्रकट होय है ताके भेद दोय हैं-एक शुभ तैजस एक I शुभ तैजस । सो शुभ तैजस तो लोकनिको दुखी देख दाहिनी भुजासे निकस लोकनिका दुख निवारे है र अशुभ तैजस क्रोधके योग कर वाम भुजासे निवमि प्रजाको भस्म करे है अर मुनिको हू भस्म करे है घर काहू मुनिके वैक्रियक ऋद्धि प्रकट होय है तब शरीरको सूक्ष्म तथा स्थूल करे हैं सो मुनिके चार शरीर हू काहू समय पाइये एक काल पांचो शरीर काहू जीवके न होंय | अथानन्तर मध्यलोक में जम्बूद्वीप आदि असंख्यात द्वीप र लवण समुद्र आदि सं ख्यात समुद्र हैं शुभ नाम तिनके सो द्विगुण २ विस्तारको लिये वलयाकार तिष्ठे हैं, सबके मध्य जम्बूद्वीप है ताके मध्य सुमेरु पर्वत तिष्ठे है सो लाख योजन ऊंचा है अर जे द्वीप समुद्र कहे तिनमें जम्बूद्वीप लाख योजनके विस्तार है ऋर प्रदक्षिणा निगुणीसे कछु एक अधिक है भर जम्बूद्वीप में देवारण्य अर भूतारण्य दो वन है तिनमें देवनिके निवास हैं और पट् कुलाचल हैं पूर्व समुद्र पश्चिमके समुद्र तक लावें पडे हैं तिनके नाम - हिमवान् महाहिमवान् निपव नील रुक्मी शिखरी । समुद्र के जलका है स्पर्श जिनके, तिनमें हद अर हृदनिमें कमल तिनमें षट्कुमारिका देवी हैं श्री ही धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी अर जम्बूद्वीपमें सात क्षेत्र हैं- भरत हैमवत हरि विदेह रम्यक हैरण्यवत ऐरावत और षट् कुलाचलनिसू गंगादिक चौदह नदी निकसी दिसे तीन र अन्तकेसे तीन र मध्यके चारोंसे दोय २ यह चौदह हैं और दूजा द्वीप धातुकी खण्ड सो लवण समुद्रसे दूना है तामें दोय सुमेरु पर्वत हैं और बारह कुलाचल अर चौदह क्षेत्र | यहां एक भरत वहां दोय यहां एक हिमवान वहां दोय । याही भांति सर्व दुगुरो जाननें र तीजा द्वीप पुष्कर ताके अर्ध भागमें मानुषोत्तर पर्वत है सो अढाई द्वीप हीमें मनुष्य पाइये हैं आगे नाही, आधे पुष्कर में दोय २ मेरु बारा कुलाचल चौदह क्षेत्र धातुकीखण्ड द्वीप समान तहां जानने । अढाई द्वीपमें पांच सुमेरु तीस कुलाचल पांच भरत पांच ऐरावत पांच महा विदेह तिनमें एक सौ साठ विजय समस्त कर्मभूमि के एक सौ सत्तर, एक २ क्षेत्रमें छह २ खण्ड तिनमें पांच २ म्लेच्छ खण्ड एक २ आर्य खण्ड । श्रार्य खंडमें धर्म की प्रवृत्ति विदेह क्षेत्र र भरत ऐरावत इनमें कम भूमि तिनमें विदेह तो शाश्वती कर्मभूमि र भरत ऐरावत में अठारा कोडाकोडी सागर भोग भूमि दोय कोडाकोडी सागर कर्मभूमि पर देवकुरु उत्तरकुरु यह शाश्वती उत्कृष्ट भोगभूमि तिनमें तीन २ पल्यकी आयु अर तीन २ कोसकी काय अर तीन २ दिन पीछे अल्प 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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