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पभ-पुराण अंवधि मनःपर्यय केवल कुमति कुश्रुत कुअवधि अर दर्शनके भेद चार-चक्षु अचक्षु अवधि केवल अर जिनके एक स्पर्शन इन्द्री होय सो स्थावर कहिये तिनके भेद-पांच पृथिवी अप तेज वायु वनस्पत्ति अर प्रसके भेद चार-वेइंद्री ते इन्द्री चोइन्द्री पंचेंद्री-जिनके स्पर्श अर रसना वेड इन्द्री, जिनके स्पर्श रसना नासिका सो तेइंद्री, जिनके स्पर्श रसना नासिका चक्षु वे चौइन्द्री, जिनके स्पर्श रसना नासिका चक्षु श्रोत्र वेपंचेद्रीं । चौइन्द्री तक तो सब संमूर्छन अर असेनी हैं अर पंचेंद्रीमें कई सम्मूर्छन केई गर्भज तिनमें केई सेनी केई असैनी जिनके मन वे सेनी अर जिनके मन नहीं वे असैनी अर जे गर्भसे उपजे वे गर्भज अर जे गर्भविना उपजै स्वत स्वभाव उपज वे सम्मुर्छन । गर्भजके भेद तीन जरायुज अंडज पोतज। जे जराकर मंडित गर्भसे निकसे मनुष्य घटकादिक वे जरायुज कर जे पिना जेरके सिंहादिक सो पोतज अर जे अंडावोसे उपजे पक्षी आदिक वे अंडज अर देव नारकियोंका उपपाद जन्म है माता पिताके संयोग विनाही पुण्य पापके उदयसे उपजे हैं । देव तो उपादशैय्याविषउपजैहैं अर नारकी बिलोंमें उपजे हैं देवयोनि पुण्यके उदयसे है अर नारक योनि पापके उदयसे हैं पर मनुष्य जन्म पुण्य पापकी मिश्रतासे है अर तिथंच गति मायाचारके योग है देव नारकी मनुष्य इन बिना सर्व तियंच जानने, जीवोंकी चौरासी लाख योनिये हैं उनके भेद सुनो
पृथिवीकाय जलकाय अग्निकाय वायुकाय नित्य निगोद इतरनिगोद ये तो सात २ लाख योनि हैं सो बयालीस लाख योनि भई अरं प्रत्येक वनस्पति दस लाख ये वावन लाख भेद स्थावरके भये, अर वेइन्द्री तेइन्द्री चौइन्द्री ये दोय दोय लाख योनि उसके छ लाख योनि भेद विकलत्रयके भए अर पचेन्द्री तिर्यचके भेद चार लाख योनिमें सब तिर्यच योनिक बासठ लाख भेद भए अर देवनिके भेद चार लाख नरकयोनिके भेद चार लाख अर मनुष्य योनिके चौदह लाख ये सब चौरासी लाख योनि महा दुखरूप हैं इनसे रहित सिद्ध पद ही अविनाशी सुख रूप है, संसारी जीव सब ही देहधारी हैं और सिद्ध परमेष्ठी देहरहित निराकार हैं, शरीरकं भेद पांच औदारिक वैक्रियक आहारके तैजस,अर कार्मण, तिनमें तैजस कार्मण तो अनादिकालस सब जीवनिको लग रहे हैं तिनका अन्त कर महा मुनि सिद्धपद पावै हैं औदारिकसे असंख्यातगुणी अधिक वर्गणा वैक्रियकके हैं अर वैक्रियकशरीरतें असंख्यात गुणी पाहारकशरीरके हैं श्रर आहारकतें अनन्तगुणी तेजसकी हैं अर तेजसतै अनन्तगुणी कामणकी हैं । जा समय संसारी जीव देहको तजकर दूसरी गतिक जाय है ता समय अनाहार कहिए जितनी देरी एक गतिसे दूसरी गतिमें जाते हुये जीवको लगे है । उस अवस्थामें जीवको अनाहारी कहिए भर जितना वक्त एक गतिसे दूसरी गतिमें जानेमें लगे सो वह समय एक समय ताथ दो समय अथि कतै अधिक तीन समय लगे है सो तासमय जीवके तैजस पर कार्मण येही दो शरीर पाइये हैं वगैर शरीरके यह जीव सिवा सिद्ध अवस्थाके अर काहू अवस्थामें काहू समय नहीं होता । या जीवके हर वक्त अर हर गतिमें जन्मते मरते साथ ही रहते हैं जा समय यह जीव घातिया अघातिया दोऊ प्रकारके कर्म क्षय करके सिद्ध अवस्थाको जाता है ता समय तैजस अर कार्मणका क्षय होता है। और जीवनिके शरीरोंके परमाणुओंकी सूक्ष्मता या प्रकार है-औदारिकर्ते वैक्रियक
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