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एकसौ पचको कई नरपतक तो परस्पर भी दुःख है बा असुर कुमार निकी प्रेरणासे भी दुख हैं. र चाँशेगे लेय सात तक असुरकुतारनिका गमन नहीं परस्पर ही पीडा उपजा हैं नरकमें नीचले से नीचले रहता दुख है सात नरक सपनिमें प्रादुखरूप है नार के यों तो पहिला भा याद आवै है अर दूसरेनारकी तथा तीजे लग असर कुमार पूर्वले कर्म याद कराय हैं तुम भले गुरुवोंके वचन उलंघ कुगुरु कुशास्त्र बलकर मां को निर्दोष कहते हुने नानाप्रकार के मांस कर अर मधु कर श्रर मदिरा कर कुदवोंका आराधन करने हुते मो मांसके दोपसे नरको पडे हो ऐमा कहके इनटी का शरीर काट २ इनके मुख में देय हैं और लोहेके तथा तांबे के गोला बलते पछाड पछाड संडालियोंसे मुख फाड छातीपर पांव देय देय तिनके मुख में घाले हैं अर गुदगरों से मारे हैं और मद्यपायीयोंको मार मार ताता तांबा शीशा प्यावे हैं अर परदार रत पापियोंको बज्राग्निकर हप्तामान लोहे की जे पूतली तिन से लिपटावे हैं अर जे परदारारत फूलनिके सेज मूते हैं तिनको मूलनिके सेज ऊपर सुवावे हैं अर स्वप्नकी माया समान असार जो राज्य उसे पायकर जे गवे हैं अनोति बरें हैं तिनको लोहेके कीलों पर बैठाय मुद्गरोंगे मारे हैं गो महा विलाप करें हैं इत्यादि पापो जीवोंको नरक के दुख होय हैं सो कहांजग कहें एक निमिपमात्र भी नरकमें विश्राम नाहीं। आयुषयंत तिलमात्र हार नाहीं अर बून्दमात्र जलपान नाही केवल मारहीका अाहार है।
तातें यह दुम्सह दुख अधर्म फल जान अधर्मको तजो ते अधर्म मधु मांसादिक अभक्ष्य भक्षण अन्याय वचन दुराचार रात्रिमा हार वेश्या बन परदारागमन ग्यास्द्रिोह मित्रद्रोह विश्वासघात कृतघ्नता लम्पटना ग्रामदाह वनदाह परधनहरण अमाग सेवन परनिंदा पर द्रोह प्राणघात बहु प्रारम्भ बहुारिग्रह निर्दयता खोटी लेश्या रौद्रध्यान मृपावाद कृपणता कठोरता दुर्जनता मायाचार निर्माल्यका अंगीकार माता पिता गुरुओंकी अवज्ञा बाल वृद्ध स्त्री दीन अ. नाथों का पीडन इत्यादि दुष्टकर्म नरसके कारण हैं वे तज शांभावघर जिनशासनको सेयो जाकर कल्याण होय । जीव छैकायके हैं-पृथिवी काय अप (जल) काय, तेजः (अग्नि) काय, वायु. काय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय । तिनकी दया पालो अर जीव पुद्गल धर्म अधर्म अाकाश काल यह छै द्रव्य हैं अर सात तत्व नव पदार्थ पंचास्तिकाय तिनकी श्रद्धा करो अर चतुर्दश गुणस्थान का स्वरूप अर सप्त भंगी वाणीका स्वरूप भली भांति केवलीकी श्राज्ञा प्रमाण उरमें धारो, स्यात् अस्ति, स्यात्नास्ति, स्यात् अस्तिनास्ति, स्पादयत्तव्य स्यात् अस्ति अबक्तव्य स्पानास्ति अवक्तव्य स्यात्वस्तिनास्ति श्रवत्तव्य, ये सप्त भंग कहे अर प्रमाण कहिये वस्तु का सर्वांग कथन अर दय काहिये वस्तुका एक अंग कथन अर निक्षेप कहिये नाम स्थापना द्रव्य भाव ये चार अर जीवों में एकेंद्रीके दोय भेद सूक्ष्म बादर अर पंचेंद्रीके दोभेद सैनी सैनी अर वेइन्द्री तेइन्द्री चौइन्द्रीय सात भेद जीवोंके हैं पर्याप्त अपर्याप्तकर चौदह भेद जीव समास होय हैं अर जीवके दो भेद एक संसारी एक सिद्ध । जिसमें संसारी के दो भेद-एक भव्य दृसंरा अभव्यजो मुक्ति होने योग्य लो भव्य शार मुक्ति न होने योग्य सो अभव्य अर जीवका निजलक्षण उपयोग है उसके दोय भेद एक ज्ञान एक दर्शन । ज्ञान समस्त पदार्थोको जाने, दर्शन समस्त पदार्थ देखे । सो ज्ञान के माठ भेद मति श्रति
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