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पच-पुराण निरंजन परवस्तुसे रहित निज गुण पर्याय स्वद्रव्य स्वक्षेत्र स्वकाल स्वभाव कर अस्तित्व रूप है जिसका ज्ञान निकट भव्योंको होय शरीरादिक पर वस्तु असार हैं आत्मतत्व सार है सो अध्यात्म विद्या कर पाइये है वह सबका देखनहारा जाननहारा अनुभवदृष्टि कर देखिये अान्मज्ञान कर जानिये अर जड पदार्थ पुद्गल धर्म अधर्म काल आकाश ज्ञ यरूप हैं ज्ञाता नाहीं अर यह लोक अनन्त अलो काकाशके मध्य अनन्तवें भागमें तिष्ठे है अधोलोक मध्य. लोक ऊर्ध्वलोक ये तीनलोक तिनमें सुमेरु पर्वतको जड हजार योजन उसके.. तले पाताल लोक हे उसमें सूक्ष्म स्थावर तो सर्वत्र है अर वादर स्थावर आधार में हैं विकलत्रय अर पंचेन्द्रिय तियंच नाही मनुष्य नाहीं खर भाग पंकभाममें भयनवासी देव तथा व्यंतरदेवनिके निवास है तिनके तले सात नरक तिनके नाम-रत्नप्रभा १ शर्करा प्रभा २ बालु को प्रभा ३ पंकप्रभा ४ धूमप्रभा ५ तमःप्रभा ६ महातमः:प्रभा ॐ सो सातों ही नरककी धरा महा दुःखकी देनहारी सदा अंधकाररूप है चार नरकनिमें ती उष्ण की बाँधा है अर पांचवें नरक ऊपरले तीनभाग उष्ण अर नीचला चोथा भाग शीत अर छठे नस्क शीत ही हैं अर सातवें महा शीत ऊपरले नरकनिमें उष्णता है सो महा विषम अर नीचले 'नरकनिमें शीत है सो अति विषम । नरकको भूमि महा दुस्सह परम दुर्गम है जहां राधि रुधिरका कीच है महादुर्गध है शान सर्प मार्जार मनुष्य खर तुरंग ऊट इनका मृतक शरीर सड जाय उसकी दुर्गन्ध से अंसख्यातगुणी दुर्गंध हैं नानाप्रकारके दुःखनि के सर्व कारण है अर पवन महा प्रचंड विकराल चले है जाकर भयंकर शब्द होय रहा है जे जीव विषय कषाय संयुक्त हैं कामी हैं क्रोधी हैं पंचइंद्रियोंके लोलुरी हैं वे जैसे लोहे का गोला जलमें डूबे तैसे नरकमें डूबे हैं जे जीवनिकी हिंसा करें मृषावाणी बोल पर धन हरै परस्त्री सेवें महा आरम्भी परिग्रही ते पापके भारकर नरकमें पडे हैं मनुष्य देह पाय जे निरंतर भोगासक्त भये हैं जिनके जीभ वश नाहीं मन चंचल ते पारी प्रचण्ड कर्मके करणहारे नरक जाय हैं जे पाप करें करावं पापकी अनुमोदना करें ते आर्त रौद्र ध्यानी नरकके पात्र हैं । वहीं वज्राग्निके कुण्डमें डारिये हैं वज्राग्निके दाह कर जलते थके पुकारें हैं अग्नि कुण्डसे छूट हैं तब वेतरणी नदीकी ओर शीतल जलकी बांछा कर जाय हैं वहां जल महा क्षार दुर्गन्ध उसके स्पर्शहीसे शरीर गल जाय है, दुख का भाजन वैक्रियिक शरीर ताकर आयु पर्यंत नानाप्रकारके दुःख भोगवे है पहिले नरक आयु उत्कृष्ट सागर १ दूजे ३ तीजे ७ चोथे १० पांचवें १७ छठे २२ सातमें ३३ सो पूर्णकर मरे हैं मारसे मेरे नाहीं वैतरणीके दुखसे डर छायाके अर्थ असिपत्र वनमें जाय हैं तहां खडग बाण. वरछी कटारी समीपत्र असराल पवनकर पडे हैं तिनकर तिनका शरीर विदारा जाय है पछाड़ खाय भूमिमें पड़े हैं और तिनकों कभी कुम्भी पाकमें पकायें हैं कभी नीचा माथा ऊचा पगकर लटकावें हैं मुगदूरोंसे मारिये हैं कु. हाडोंसे काटिये हैं करोतनसे विदारिये हैं पानीमें पेलिये है नानाप्रकारके छेदन भेदन हैं। यह नारकी जीव महा दीन महा तृषा कर दूषित पीने का पानी मांगे है तब तांबादिक गाल प्यावे हैं ते कहे हैं. हम को यहां तृषा नाही हमारा पीछा छोड दो ता. बलात्कार तिनको पछाड संडासियांसे मुख फार मार मार प्यावे हैं कण्ठ हृदय विदीर्ण होय जाय है उदर फट जाय है तीजे
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