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________________ ५२६ पद्म पुराण की वस्तु आदरसो देवें हैं, समस्त सेनामें कोई दीन बिभुक्षित तृषातुर कुवस्त्र मलिन चिन्तावान दृष्टि नहीं पडे है । सेनारूप समुद्र में नर नारी नानाप्रकारके आभरण पहिरे सुन्दर वस्त्रनिकर शोभायमान महा रूपवान अति हर्षित दीखें | या भांति महाविभूति कर मण्डित सीताके पुत्र चले चले अयोध्या के देशमें आये, मानों स्वर्ग लोक में इन्द्र आए, जा देशमें यव गेहूं चावल आदि अनेक धान्य फल रहे हैं और पौंडे सांठेनिके वाडे ठौर २ शोभे हैं पृथिवी अन्न जल तृण कर पूर्ण है अर जहां नदियोंके तीर हंसनि के समूह क्रीडा करे हैं अर सरोवर कमलनिसे शोभायमान हैं और पर्वत नाना प्रकार के पुष्पनिकर सुगन्धित होय रहे हैं अर गीतनिकी ध्वनि ठौर ठौर होय रही है श्रर गाय भैंस चलधनिके समूह विचर रहे हैं अर ग्वाली बिलोवणा विलोवे हैं, जहां नगरनि सारिखे नजीक २ ग्राम हैं अर नगर ऐसे शोभे हैं मानों सुरपुर ही है । महा तेजकर युक्त लवणांकुश देशकी शोभा देखते अति नीतिसे आए काहूको काहुही प्रकारका खेद न भया । हाथिनिके मद भर कर पंथ में रज दब गई, कीच होय गई श्रर चंचल घोडनिके खुरनिके घातकर पृथ्वी जर्जरी हो गई । चले चले अयोध्या के समीप आए दूरसे संध्या के बादलनिके रंग समान अति सुन्दर अयोध्या देख बज्रसंघको पूछी - हे माम ! यह महा ज्योतिरूप कौनसी नगरी है तब बज्रजंधने निश्चयकर कहीहे देव ! यह अयोध्या नगरी है जाके स्वणमई कोट तिनकी यह ज्योति भास हैं या नगरी में तिहारा पिता बलदेव स्वामी बिराजे है जाके लक्ष्मण अर शत्रुघ्न भाई या भांति बज्रघने कही र दोऊ कुमार शूरवीरताकी कथा करते सुखसे आए पहुंचे । कटक के अर अयोध्या के बीच सरयू नदी रही दोऊ भाईनिके यह इच्छा कि शीघ्र ही नदी उतर नगरी लेवें जैसे कोई मुनि शीघ्र ही मुक्त हुवा चाहै ताहि मोक्षकी श्राशारूप नदी यथाख्यात चारित्र न होने देय श्राशारूप नदीको तिरे तब मुनि मुक्त होय तैसे सरयू नदी के योगसे शीघ्र ही नदी पार उतर नगरीमें न पहुँच सके तब जैसे नंदन वनमें देवनिकी सेना उतरे तैसे नदी के उपवनादिमें ही कटक के डेरा कराए । अथानन्तर पर सेना निकट आई सुन राम लक्ष्मण आश्चर्यको प्राप्त भए अर दोनों भाई परस्पर बतलायें ये कोई युद्ध के अर्थ हमारे निकट आये हैं सो मुवा चाहे हैं वासुदेवने वितिको आज्ञा करी — युद्धके निमित्त शीघ्र ही सेना भेली करो ढील न होय जिन विद्याधरोंके कपियोंकी ध्वजा बैलोंकी ध्वजा अर हाथियोंकी ध्वजा सिंहों की ध्वजा इत्यादि अनेक भांति की ध्वजा तिन को बेग बुलावो सो बिराधितने कही जो श्राज्ञा होयगी सोई होयमा उसही समय सुग्रीवादिक अनेक राजावों पर दूत पठायेसो दूतके देखवे मात्र ही सब विद्याधर बडी सेनासे आए । भामंडल भी आया सो भामण्डलको अत्यंत आकुल देख शीघ्र ही सिद्धार्थ र नारद जायकर कहते भए - यह सीताके पुत्र हैं सीता पुण्डरीकपुर में है तब यह बात सुनकर बहुत दुखित भया अर कुमारों के अयोध्या आयचे पर आश्चर्यको प्राप्त भया और इनका प्रताप सुन हर्षित भया मनके वेग समान जो विमान उस पर चढकर परिवार सहित पुण्डरीकपुर गया । बहिन से मिला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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