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________________ एकसौदोवां पर्व ५२७ सीता भामंडल को देख प्रति मोहित भई आंसू नाखती संती विलाप करती भई पर अपने ताई घरसे काढनेका र पुण्डरीकपुर आयको सर्व वृत्तांत कहा तब भामंडल बहिनको धीर्य बंधाय कहता भया - हे बहिन ! तेरे पुण्यके प्रभावसे सब भला होयगा अर कुमार अयोध्या गये सो भला न किया, जायकर बलभद्र नारायणको क्रोध उपधाया राम लक्ष्मण दोनों भाई पुरुषोत्तम देवोंसे भी न जीते जांय महा योवा हैं, कुमारोंके श्रर उनके युद्ध न होय सो ऐसा उपाय करें इसलिये तुम हू चलो । तब सीता पुत्रों की बधू संयुक्त भामण्डल के विमान में बैठ चली । राम लक्ष्मण महाक्रोधकर रथ घोटक गजवियादेव विद्यावर तिनकर मंडित समुद्र समान सेना ले बाहिर निकसे र घोडनिके रथ चढा शत्रुघ्न महा प्रतापी मोतिनके हार कर शोभायमान है वक्षस्थल जिसका सो रामके संग भया र कृतांव सब सेनाका अग्रेसर भया । जैसे इन्द्रकी सेनाका अग्रगामी हरिणकेशी नामा देव होय उसका रथ अत्यंत सोहता मया देवनिके विमान समान जिसका रथ सो सेनापति चतुरंग सेना लिये अतुलली अतिप्रतापी महा ज्योतिको धरे धनुष चढाय बाण लिये चला जाय है, जिसकी श्याम ध्वजा शत्रुओंसे देखी न जाय उसके पीछे त्रिमूर्द्ध वह्निशिख सिंहविक्रम दीर्घभुज सिंहोदर सुमेरु बालखिल्य रौद्रभूत जिसके अष्टापदों के रथ बज्रकर्ण पृथु मारदमन मृगे वाहन इत्यादि पांच हजार नृपति कृतांतवक्र के संग अग्रगामी भए बन्दीजन बखाने हैं बिरद जिन केर अनेक रघुवंशी कुमार, देखे हैं अनेक रण जिन्होंने, शस्त्रोंपर है दृष्टि जिनकी, युद्धका हैं उत्साह जिनके, स्वामी भक्ति में तत्पर महा बलवन्त धरती को कंपाते शीघ्र ही निकसे । कैयक नाना प्रकारके रथोंपर चढ़े कैयक पर्वत समान ऊंचे कारी घटा समान हाथिन पर चढे, कैयक समुद्र की तरंग समान चंचल तुरंग तिनपर चढे । इत्यादि अनेक वाहनों पर चढ़े युद्धको निकसे वादित्रों के शब्द कर करी है व्याप्त दशों दिशा जिन्होंने बपतर पहिरे टोप धरे क्रोवकर संयुक्त है चित्त जिनका, तत्र लवण अंकुश परसेनाका शब्द सुन युद्धकों उद्यमी भये - वज्रजंघको श्राज्ञा वरी, कुमारकी सेनाके लोक युद्धके उद्यमी हुने ही । प्रलय कालकी अग्नि समान महा प्रचण्ड अंग देश बंगदेश नेपाल वर्वर पौंड्र मागव पारसैल स्यंघल कलिंग इत्यादि अनेक देशनिके राजा रत्नांकको आदि दे महा बलवंत ग्यारह हजार राजा उत्तम तेजके धारक युद्धके उद्यमी भए दोनों सेनानिका संघट्ट भया दोनों सेनानिमें देवनिको असुरनिको आश्चर्य उपजे ऐसा महा भयंकर शब्द भया जैसा प्रलय काल का समुद्र गाजै परस्पर यह शब्द होते भये क्या देख रहा है प्रथम प्रहार क्यों न करे ? मेरा मन तोपर प्रथम प्रहार करिवेपर नाहीं तातें तू ही प्रथम प्रहारकर कर कोई कहे है एक डिग यागे होवो जो शस्त्र चलाऊ कोई अत्यंत समीप होय गये तब कहे है खंज्जर तथा कटारी हाथ लेवों निपट नजीक भए बाणका अवसर नाहीं । कोई कायरको देख कहे हैं तू क्यों कांपे है मैं कायर को न मारू' तू परे हो आगे महा योधा खडा है उससे युद्ध करने दे । कोई वृथा गाजे है उसे सामंत कहै है— हे क्षुद्र ! कहा वृथा गाजे है गाजनेमें सामन्वपना नाहीं जो तो में सामथ्य है तो आगे आव, तेरी रणकी भूख भगाऊ इम भांति योवानिमें परस्पर वचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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