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________________ एकसौ दोवा पर्न वे तिहारे गुरुजन हैं उन विरोध योग्य नाहीं । तुम चित्त सौम्य करहु । महा विनयवन्त होय जाय कर पिताको प्रणाम करहु यह ही नीतिका मार्ग है ॥ तब पुत्र कहते भए. हे माता! हमारा पिता शत्रुभावको प्राप्त भया हम कैसे जाय प्रणाम करें अर दीनताके वचन कैसे कहें हम तो माता तिहारे पुत्र हैं ताते रण संग्राममें हमारा मरण होय तो होवो परन्तु योधानिसे निन्ध कायर वचन तो हम न कहैं, यह वचन पुत्रनिके सुन सीता मौन पड रही परन्तु चित्त में अति चिन्ता है दोऊ कुमार स्नानकर भगवान की पूजा कर मंगल पाउपह सिद्धनिको नमस्कार कर माताको धीर्यवधायन स्कार कर दोऊ महा मंगलरूप हाथी पर चढे मानों चांद सूर्य गिरिके शिखर तिष्ठे हैं अयोध्या ऊपर युद्धको उद्यमी भए जैसे राम लक्ष्मण लंका ऊपर उद्यमी भए हुने इनका कूच सुन हजारों योधा पुण्डरीकपुरसे निकसे, सब ही योधा अपना अपना हल्ला देते भए वह जाने मेरी सेना अच्छी दीखे वह जाने मेरी, महा कटक संयुक्त नित्य एक योजन कून करें सो पृथिवीकी रक्षा करते चले जाय हैं किसीका कुछ उजाडे नाहीं । पृयेशी नानाप्रकारके धान्य करि शोभायम न है कुनारनिका प्रताप श्रागे आगे बढता जाप है मार्गके राजा भेट दे मिले हैं, दस हजार वेलदार कुदाल लिए आगे आगे चले जाय हैं अर धरती ऊची नीचीको सम करें हैं अर कुल्हाडे हैं हाथोंमें जिनके वे भी आगे आगे चले जाय हैं अर हाथी ऊंट भैमा बलद खच्चर खजाने के लदे जाय हैं, मंत्री आगे आगे चले जाय हैं अर प्यादे हिरण की न्याई उछ नते जाय हैं अर तुरंगनिके असवार अति तेज से चले जाय हैं तुरंगनिकी हींस होय रही है अर गजराज चले जांय हैं जिनके स्वर्णकी सांकल अर महा घंटानिका शब्द होय है अर जिनके कानों पर चमर शोभे हैं अर शंखनिकी ध्वनि होय रही है अर मोतिनिकी झलरी पानीके बुदबुदा समान अत्यन्त सोहे हैं पर सुन्दर हैं याभूपण जिनके महा उद्धत जिनके उज्जल दांनिके स्वर्ण आदिके पन्ध बन्धे है अर रत्न स्वर्ण आदिक की माला तिनसे शोभायमान चलते पर्वत समान नानाप्रकारके रंग रंगे अर जिनके मद झरे हैं अर कारी घटा समन श्याम प्रचंड वेगको धरें जिनपर पाखर परी हैं नानाप्रकार के शस्त्रनिकरि शोभित हैं अर गजरा करे हैं और जिन पर महा दीप्ति के धारक सामन्त लोक चड़े हैं अर महावतनिने अति सिखाये हैं अपनी सेनाका र परसेनाका शब्द पिछाने हैं सुन्दर है चेष्टा जिनकी, अर घडनिके असवार वखतर पहिरे खेट नामा आयुधको धरे दरछी है जिनके हाथमें घोडनिके समूह तिनके खुनिके घातकरि उठी जो रज ताकरि आकाश व्याप्त होय रहा है ऐसा सोहे है मानों सुफेद बादलनिसे मंडिन है अर पियादे शस्त्रनिके समूहकरि शोभित अनेक चेष्टा करते गर्वसे चले जाय हैं वह जाने में आगे चलू यह जाने मैं, अर शयन यापन तांबूल सुगंध माला महा मनोहर वस्त्र आहार विलेपन नानाप्रकारकी सामिग्री पटती जाप है ताकार सवही सेनाक लोक सुखरूप हैं काहको काहू प्रकारका खेद नाहीं अर मजल मजल पै कुमारनिकी आज्ञाकार भले भले मनुष्यनिको लोक नानाप्रकारकी वस्तु देवे हैं उनको यही कार्य सौंपा है सो बहुत सावधान हैं नानाप्रकार के अन्न जल मिष्टान्न लवण घृत दुग्ध दही अनेक रस भांति भांति खाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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