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पद्मपुराण अर कुबुद्धिको उपदेश देना वृथा है जैसे सूर्यका उद्योत धूपोंको वृथा है यह दोंनो भाई देदीप्य. मान है यश जिनका अति सुन्दर महाप्रतापी सूर्यकी न्याई जिनकी ओर कोऊ विलोक न सके, दोऊ भाई चन्द्र सूर्य समान दोनों में अग्नि अर पवन ममान प्रीति मानों वह दोनों ही हिमाचन वि. ध्याचलसमान हैं वृषभनाराचसंहनन है जिनके, सर्व तेजस्वीनिके जीतको समर्थ सब राजावोंका उदय अर अस्त जिनके आधीन होयगा महा धर्मात्मा धर्मके धारी अत्यन्त रमणीक जगत को सखके कारण सब जिनकी आज्ञामें, राजा ही आज्ञाकारी तो पोरों की क्या बात काहूको आज्ञारहित न देख सकें अपने पांवनिके नखोंमें अपनाही प्रतिवम्ब देख न सकें तो और कोनसे नम्रीभूत होंय अर जिनको अपने नख अर केशोंका भंग न रुचे तो अपनी आज्ञाका भंग कैसे रुचे अर अपने सिरयर चूडामणि धारिये अर सिरपर छत्र फिरे अर सूर्य ऊपर होय आय निकसे तोभी न सहार सकें तो औरोंकी ऊंचता कैसे सहारें, मेघका धनुष चढा देख कोप करें तो शत्रु के धनुषकी प्रबलता कैसे देख सकें चित्रामके नृप न नमैं तो भी सहार न सकें तो साक्षात् नृों का गर्व कब देख सकें, अर सूर्य नित्य उदय अस्त होय उसे अन्य तेजस्वी गिनें घर पवन महा बलवान है परन्तु चंचल सो उसे बलवान न गिनें जो चलायमान सो बलवान काहेका ? जो स्थिरभूत अवल सो बलवान अर हिमवान पर्वत उच्च है स्थिरीभूत है परन्तु जड अर कठोर कंटक सहित है तातै प्ररांपा योग्य न गिनें पर समुद्र गंभीर है रत्नों की खान है परन्तु क्षार अर जलचर जीवों को धरै अर शंखोंकर युक्त तात समुद्रको तुच्छ गिनें । ये महागुण निके निवास अति अनुपम जेते प्रचल राजा हुते तेजरहित होय इनकी सेवा करते भए, ये महाराजावों के राजा सदा प्रसन्नवदन मुखसे अमृत वचन बोलें सपनि कर सेवन योग्य जे दूरवर्ती दुष्ट भूपाल हुने ते अपने तेजकर मलिनवदन किये सब मुरझाय गये इनका तेज ये जन्मे तबसे इनके साथही उपजा है शस्त्रोंके धारणहारे जिनके कर के उदर श्यामताको थरे हैं सो मानों अनेक राजावों के प्रतापरूप अग्निके बुझावनेसे श्याम हैं समस्त दिशारूप स्त्री वशीभूत कर देने वाली भई महा धीर धनुपके धारक तिनके सत्र अज्ञाकारी भए जैसा लवण तैसा ही अंकुश दोनों भाइनमें कोई कमी नाहीं ऐसा शब्द पृथिवी में सबके मुख, ये दोनों नवयौवन महासुन्दर अद्भुन चेष्टाके धरण हारे पृथिवीमें प्रसिद्ध समस्त लोकोंकर स्तुति करवे योग्य जिनके देखिवे की सबके अभिलाषा पुण्य परमाणुनिकर रचा है पिंड जिनका, सुखका कारण है दर्शन जिनका स्त्रियोंके मुखरूप कुमुद ति. नके प्रफुल्लित करनेको शरद की पूर्णमासीके चन्द्रमा समान सोहते भए, माताके हृदयको आनन्दके जंगम मंदिर ये कुमार सर्यसमान कमल नेत्र देवकुमार सारिखे श्रीवत्सलक्षणकर मंडित है वक्ष. स्थल जिनका अननगपराक्रम के धारक संसार समुद्र के तट आये चरम शरीर परस्पर महाप्रेमके पात्र सदा धर्मके मागमें तिष्ठे हैं देवोंका पर मनुष्योंका मन हरे हैं।
भावार्थ-जो धर्मात्मा होय सो काहू का कुछ न हरे ये धर्मात्मा परथन परस्त्री तो न हरें परन्तु पराया सन हरें। इनको देख सबनिका मन प्रसन्न होय ये गुणोंकी हदको प्राप्त भए हैं। गुण नाम ड्रोरे का भी है सो हदपुर गांठको प्राप्त होय है अर इनके उर में गांठ नाही महा निः
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