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एकसौवां पर्ण उत्सव किया बहुत संपदा याचकों को दई अर एक का नाम अनंगलवण दूजे का नाम मदनांकुश ये यथार्थ नाम थरे फिर ये बालक वृद्धि को प्राप्त भए माताके हृदयको अति आनंद के उपजावन हारे महाधीर शूरवीरताके अंकुर उपजे, सरसों के दाणे इनके रक्षा के निमित्त इनके मस्तक डारे सो ऐसे सोहते भए मानों प्रतापरूप अग्निके कण ही हैं जिनका शरीर ताये सुवर्ण समान अति देदीप्यमान सहजस्वभाव तेजकर अति सोहता भया अर जिनके नख दर्पणसमान भासते भए । प्रथम बाल अवस्था में अव्यक्त शब्द बोले सो सर्वलोकके मनको हरें अर इनकी मंद मुलकनि महामनोग्य पुष्पों के विकसने समान लोकनके हृदयको मोहती भई अर जैसे पुष्यों की सुगन्धता भ्रमरोंके समूह को अनुरागी करे तैसे इनकी वासना सब के मनको अनुरागरूप करती भई यह दोनों माताका दूध पान कर पुष्ट भए अर जिनका मुख महासुन्दर सुफेद दांतों कर अति सोहता भया मानों यह दांत दुग्ध समान उज्जवल हास्यरस समान शोभायमान. दीखे हैं, थायकी श्रीगुरी पकडे आंगन में पांव धरते कौन का मन न हरते भए ? जानकी ऐसे सुन्दर क्रीडा के करणहारे कुमारों को देखकर समस्त दुःख भूलगई । बालक बडे भए अति मनोहर सहज ही सुन्दर हैं नेत्र जिनके, विद्या पढने योग्य भए तब इनके पुण्यके योगकर एक सिद्धार्थनामा क्षुल्लक शुद्धात्मा पृथिवीमें प्रसिद्ध वज्रजंघके मन्दिर आया सो महाविद्याके प्रभाव कर त्रिकाल सन्ध्या में सुमेरु. गिरिक चैत्यालय बंदि आवै प्रशांतवदन साधु समान है भावना जिसके अर खंडित वस्त्र मात्र है परिग्रह जिसके उत्तम अणुव्रतका थारक नानाप्रकारके गुणों कर शोभायमान, जिनशासनके रहस्य का वेत्ता समस्त कलारूप समुद्र का पारगामी तपकर मंडित अति मोहै सो आहारके निमित्त भ्रमता संता जहां जानकी तिष्ठे थी वहां आया, सीता महासती मानों जिनशासन की देवी पद्मावती ही है सो क्षुल्लक को देख अति आदर से उठकर सन्मुख जाय इच्छ कार करती भई अर उत्तम अन्नपानसे तृप्त किया, सीता जिनधर्मियों को अपने भाई समान जाने है सो क्षुल्लक अष्टांग निमित्त ज्ञानका वेत्ता दोनों कुमारों को देखकर अति संतुष्ट होयकर सीता से कहता भया–हे देवि ! तुम सोच न करो जिसके असे देवकुमार समान प्रशस्त पुत्र उसे कहा चिंता ? ___अथानन्तर यद्यपि चुन्नक महाविरक्त चित्त है तथापि दोनों कुमारोंके अनुरागसे कैयक दिन तिनके निकट रहा थोडे दिनों में कुमारों को शास्त्र शस्त्रविद्या में निपुण किया सो कुमार ज्ञान विज्ञानमें पूर्ण सर्व कलाके धारक गुणों के समूह दिव्यास्त्रके चलायवे पर शत्रओंके दिव्यास्त्र आवें तिनके निराकरण करवेकी विद्या में प्रवीण होते भये, महापुण्यके प्रभावसे परमशोभाको धारें महालक्ष्मी वान दूर भए हैं मति श्रुति आवरण जिनके मानो उघडे निधिके कलश ही हैं। शिष्य बुद्धिमान
होय तब गुरुको पढायत्रका कछू खेद नाहीं जैसे मंत्री बुद्धिमान होय तब राजाको राज्य कार्यका .. कछु खेद नाहीं अर जैसे नेत्रान पुरुषों को सूर्यके प्रभारकर घट पटादिक पदार्थ सुख भारौं
तैसे गुरुके प्रभावकर बुद्धिवन्तको शब्द अर्थ सुख से भास जैसे हमों को मानसरोवरमें आवते कछु खेद नाहीं तैसे विवेकवान विनयवान बुद्धिमानको गुरुभक्ति के प्रभावसे ज्ञान प्रावते परिश्रम नाहीं सुख से अति गुणोंकी वृद्धि होय है अर बुद्धिमान शिष्यको उपदेश देव गुरु कृतार्थ होय है
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