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पद्म-पुराण तो भी मेरे चित्तसे दूर न होय है वह साध्वी शीलवंती मेरे हितमें सदा उद्यमी । या भांति सदा चितारवो करे अर लक्ष्मणके उपदेशकर अर सूत्रासिद्धांतके श्रवणकर कछू इक रामका शोक क्षीण भया धैर्यको थार धर्मध्यानमें तत्पर भया। यह कथा गौतम स्वामी राजा श्रेणि कसे कहै हैंवे दोनों भाई महा न्यायवंत अखण्डप्रीतिके धारक प्रशंसा योग्य गुणोंके समुद्र रामके हल मूसल का आयुध लदमणके चक्रायुध समुद्र पर्यंत पृथिवीको भली भांति पालते सन्ते सौधर्म ईशान इन्द्र सारिखे शोभते भए। वे दोनों धीर वीर स्वर्गसमान जो अयोध्या उसमें देवों समान ऋद्धि भोगते महाकान्तिके धारक पुरुषोत्तम पुरुषोंके इंद्र देवेंद्र समान राज्य करते भए सुकृतके उदय से सकल प्राणियोंको आनन्द देयवेमें चतुर सुन्दर चरित्र जिनके, सुख सागरमें मग्न सूर्य समान तेजस्वी पृथिवीमें प्रकाश करते भए ।।
इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनिकाविष ___ गमको सीताका शोक वर्णन करनेवाला निन्यानवेवां पर्ण पूर्ण भया ।। ६६ ॥
अथानन्तर गौतम स्वामी कहै हैं-हे नराधिप ! राम लक्ष्मण तो अयोध्यामें तिष्ठे हैं अर अब लवणांकुशका वृत्तांत कहै हैं सो सुन-अयोध्याके सब ही लोक सीताके शोकसे पांडुता को प्राप्त भए अर दुर्बल होय गये अर पुण्डरीकपुरमें सीता गर्भके भार कर कछू एक पांडुता को प्राप्त भई अर दुर्बल भई । मानों सकल प्रजा महा पवित्र उज्ज्वल इसके गण वर्णन करे है सो गुणोंकी उज्ज्वलताकर श्वेत होय गई है अर कुचोंकी बीटली श्यामताको प्राप्त भई सो मानो माताके कुच पुत्रोंके पान करिवेके पयके घट हैं सो मुद्रित कर राखे हैं पर दृष्टि क्षीरसागर समान उज्ज्वल अत्यंत मधुरताको प्राप्त भई भर सर्व मंगलके समूहका आधार जिसका शरीर सर्वमंगलका स्थानक जो निर्मल रत्नमई प्रांगण उसमें मन्द २ पिचरै सो चरणोंके प्रतिबिंब ऐसे भासैं मानों पृथिवी कमलोंसे सीताकी सेवा ही कर है अर रात्रि में चन्द्रमा याके मन्दिर ऊपर
आय निकसे सो ऐसा भासै मानों सुफेद छत्र ही है अर सुगन्धके महल में सुन्दर सेज ऊपर सूती ऐसा स्वप्न देखती भई कि महा गजेंद्र कमलोंके पुटविष जल भर कर अभिषेक करावे है अर बारम्बार सखीजनोंके मुख जय जयकार शब्द सुनकर जाग्रत होय है, परिवार के लोक समस्त आज्ञारूप प्रवर्ते हैं क्रीडाविष भी यह आज्ञाभंग न सह सके सब आज्ञाकारी भए शीघ्र ही आज्ञा प्रमाण करे हैं तो भी सबों पर तेज करे है, काहेसे कि तेजस्वी पुत्र गर्भ विपै तिष्ठे हैं अर मणियों के दर्पण निकट हैं तो भी खड़ग काढ खड़गमें मुख देखे है पर बीणा बांसुरी मृदंगादि अनेक वादित्रोंके नाद होय हैं सो न रुचें अर धनुषके चढायवेकी ध्वनि रुचे है अर सिंहोंके पिंजरे देख जिसके नेत्र प्रसन्न होंय अर जिसका मस्तक जिनेन्द्र टार औरकों न नमै।
अथानन्तर नव महीना पूर्ण भये श्रावण सुदी पूर्णमासीके दिन श्रवण नक्षत्रके विपै वह मंगल रूपिणी सर्वलक्षण पूर्ण शरदकी पूनोंके चन्द्रमा समान है वदन जिसका सुखसे पुत्र युगल जनती भई । सो पुत्रोंके जन्ममें पुण्डरीकपुरकी सकल प्रजा अतिर्पित भई मानों नगरी नाच उठी, ढोल नगारे आदि अनेक प्रकारके वादिन बाजने लगे शंखोके शब्द भये । बज्रजंघने अति
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