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निन्यानवेवां पर्व भये, जिनके सदा शुभका उपार्जन सो पुण्यके उदय कर पतिसहित महा सुख भोगे घर अशुभके उदयतें दुस्सह दुखको प्राप्त भई, लंकाद्वीपमें रावण हर कर लेगया तहां पतिकी वार्ता न सुन ग्यारह दिन भोजन बिना रही पर जबतक पतिका दर्शन न भया तब तक आभूषण सुगंधलेपनादिरहित रही बहुरि शत्रुको हत पति ले आये तब पुण्यके उदय रुखको प्राप्त भई बहुरि अशुभका उदय आया तब बिना दोप गर्भवतीको पतिने लोकापवादके भक्तै घरसे निकासी, लोकापवाद रूप सर्पके डसने कर पति अचेत चित्त भया सो विना समझे भयंकर वन में जी | उत्तम प्राणी पुण्यरूप पुष्पनिका घर ताहि जो पापी दुर्वचनरूप न कर बाले हैं सोही दोष रूप दहनकर दाइको प्राप्त होय । हे देवी, तू परम उत्कृष्ट पतिव्रता महासती है प्रशंसायोग्य है चेष्टा जाकी, जाके गर्भाधान में चेन्यालयनिके दर्शनको बांछा उपजी श्रबहू तेरे पुरही का उदय है तू मा शीलवती जिनमती है तेरे शीलके प्रसाद कर या निर्जन वनमें हाथी के निमित्त मेरा आावना भया। मैं वज्रजंघ पुंडरीकपुरका अधिपति राजा द्विरदवाह सोमवंशी महाशुभ आचरणके धारक तिनके सुबंधु महिषीं नाम राणी ताका मैं पुत्र तू मेरे धर्मके विधान कर बडी बहिन है । पु ंडरीकपुर चल शोक तज । हे बहिन, शोकसे कछू कार्य सिद्ध नाहीं वहां पुडरीकपुर राम तोहि ढूंढ कृपाकर बुलायेंगे । राम हू तेरे वियोगसे पश्चाताप कर अति व्याकुल हैं, अपने प्रमाद कर अमोलिक सहा गुणवान रत्न नष्ट भया, ताहि विवेकी महा आदर से ढूंढे ही, तातें है पतिव्रते, निसंदेह राम तुम्हे यादरसे बुलायेंगे | या भांति वा धर्मात्माने सीताकोशांतता उपजाई तब सीता धीर्य को प्राप्त भई मानो भाई भामंडल ही मिला तब बाकी अति प्रशंसा करती भई - तू मेरा अति उत्कृष्ट भाई है महा यशवंत शूरवीर बुद्धिमान शांतचित्त साधर्मिनि पर वत्सल्यका करणारा उत्तम जीव है । गौतमस्वामी कहे हैं— हे श्रेणिक, राजा वज्रजंघ अधिगम सम्यग्दृष्टि, अधिगम कहिये गुरूपदेशकर पाया है सम्यक्त्व जाने अर ज्ञानी है परम तत्वका स्वरूप जनवहारा पवित्र है श्रात्मा जाकी सांधु समान है जाके व्रत गुण शीलकर संयुक्त मोक्षमार्गका उद्यमी सो ऐसे सत्पुरुषनिके चरित्र दोषरहित पर उपकारकर युक्त कौनका शोक न निवारें । कैसे हैं सत्पुरुष, जिनमत में यति निश्चल है चित्त जिनका । सीता कहै है है वज्रज ! तू मेरे पूर्व भवका सहोदर है सो जोया भव में तैन सांचा भाईपना जनाया मेरा शोक संतापरूप तिमिर हरा, सूर्यमान तू पवित्र आत्मा
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इति श्रीरबिपेणाचार्यविरचित महा पद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषावचनिकाविषै सोताको बजंधका धार्य का वर्णन करनेवाला अठानवेवां पर्व पूर्ण भया ॥ ६८ ॥
यथानन्तर वज्रधने सीता के चढवेको चरणमात्र में अद्भुत पालकी मगाई सो सीता तापर आरूढ भई पालकी विमानसमान महा मनोग्य समीचीन प्रमाणकर युक्त सुन्दर हैं थंभ जाके श्रेष्ठ दर्पण शंभो में जड़े हैं यर मंतिनकी झालरी कर पालकी मण्डित हैं श्रर चन्द्रमा समान उज्वल चनर तिन हर शोभित है, मोतिनके हार जल के बुदबुदे समान शोभ हैं अर विचि
जे वस्त्र तिनकर मण्डित है चित्राम कर शोभित है सुन्दर हैं झरोखा जामें ऐसी सुखपालपर चढ पर ऋद्धि कर युक्त बडी सेना मध्य सीता चली जाय हैं, आश्चर्यको प्राप्त भई कर्मोकी
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