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________________ पद्मपुराण विचित्रताको चिंतवे है तीन दिन में भयंकर बनकों उघ पुण्डीशपुरके देशी झाई, उत्तम है चेष्टा जाकी, सब देशके लोक माताको आय मिले ग्राम २ में भेट करें । कैसा है वज्रजपशा देश, समस्त जातिके अन्नकर जहां समस्त पृथिवी श्राच्छादित होय रही है अर क्रूडाउडान नजीक हैं ग्राम जहां, रत्ननिकी खान स्वर्ण रूपादिककी खान सुपर जैसे पुर सो देखती थकी सीता हर्ष को प्राप्त भई वन उपान की शोभा देखती चली जाय है, ग्रमले महन्त भेकर नानाप्रकार स्तुति करें हैं । हे भगवती, हे भाता, आपके दर्शन कर हम पापरहित भए कृतार्थ भए अर बारार प्रार्थना करते भो अर्घ पाय किये पर अनेक राजा देवनि समान अाय मिले सो नानाप्रकार भेट करते भए अर बारम्बार बन्दना करते भर । या मांति सीना सी पैः पैड पर राजा प्रजानिकर पूजी सती चली जाय है वन्नघका देश अति सुखी ठोर ठोर वन उपवनादिकर शोभित ठोर ठोर चैन्याले देख अति हर्षित भई मनमें विचार है जहां राजा धर्मात्मा होय यहां प्रजा सुखी होय ही। अनुकन कर पुण्डरीकपुर के समीप पाए सो राजाकी नसें मीताका आगमन सुन नगरके सब लोक सन्मुख आए अर भेट करते भए, नगर की अतिशोभा करी, मु. माम कर पृथिवी छांटी, गली बाजार सब सिंगारे अर इन्द्र धतुप ममान तोरण चढाए अछाशनिमें पूर्ण कलश थाये, जिनके मुख सुन्दर पल्लायुक्त हैं अर मंदिरनि पर धजा चढी बारवर मगल गाये हैं मानों वह नगर अानन्द कर नृत्य ही करे ई नगर के दाजे पर तथा कोट के कंगूरनियर लोक खडे देखे हैं हर्पकी वृद्धि हो रही है नगरके बाहिर अर भीतर सबहार तक साताके दर्शनको लोक खडे हैं, चलायमान जे लोकनिक सम्र तिनकर नगर यद्याने स्थावर है तथापि जानिए जगन होय रहा है। नानाप्रकार के बादित्र बाजे हैं तिनके बाद कर दशोदिशा शब्दायमान होय रही हैं शंख बाजे हैं बन्दी जन विरद बखाने हैं मसात नगर के लोक आश्चर्यको प्राप्त भए देखे हैं अर सीताने नगर में प्रवेश किया जैसे लक्ष्मी देवलोक में प्रवेश करे वज्रन पके मदिरमें अतिसुन्दर जिनमदिर हैं, सब जलोकी ही जन सीताके सन्मुख श्राई, सीता पाल कीसे उतर जिनमंदिरमें गई ! कैसा है जिनम्नन्दिर ? महा सुन्दर उपवन कर वेष्टित है अर वापिका सरोवरी तिनकर शोभित है, सुमेरु शिखर समान सुन्दर साणमई है जेसे भाई भामण्डल सीताका सन्मान करे तैसे वज्रघ आदर करता भया, बज्रबंधक समस्त परिवार के लोक अर राजलोककी समस्त राणी सीताकी सेवा करें अर ऐस मनोहर शब्द दिरन्तर कहे हैं-हे देवते ! हे पूज्ये ! हे स्वामिनी ! हे ईशानने ! सदा जयवन हो बहुत दिन जीत्रो आनन्दको प्राप्त होतो, वृद्धिको प्राप्त होतो आज्ञा करो । या भांति स्तुति करें अ जो आशा करें सो सीस चहाचे अति हर्षसे दोर कर सेवा करें अर हाथ जोड सीस नाय नमस्कार करें वहां सीता अति आनन्दतें जिन धर्मकी कथा करती तिष्ठे अर जो सामन्तनिकी भेट अ.वे पर राजा भेट कर सो जानकी धर्म कार्य में लगावे यह तो यहां धर्मका पारायन कर है। __ अर वह कृतांतवक्र सेनापति तप्सायमान है चित्त जाका रथके तुरंग खेदको प्राप्त हुने तिनको खेदरहित करता हुअा श्रीरामचन्द्र के समीप पाया याको प्रावता सुन अनेक राजा Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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