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________________ चौरानवे पर्व अथानन्तर और भी विजयार्ध के दक्षिण श्रेणी में विद्याधर हुने वे सब लक्ष्मण ने युद्ध कर जीते कैसा है युद्ध ? जहां नाना प्रकारके शस्त्रोंके प्रहार कर घर सेनाके संघट्ट कर अंधकार होय रहा है। गौतम स्वामी कहैं हैं — हे श्रेणिक ! वे विद्याक्षर अत्यंत दुःस्सह महा विषवर रुमान हुते सो सब राम लक्ष्मणके प्रतापकर मानरूप विष से रहित होय गए, इनके सेवक भए तिनकी राजधानी देवोंकी पुरी समान तिनके नाम कैयक तुझे कहूँ हूँ रविप्रभ, घनप्रभ, कांचनप्रभ, मेघप्रभ शिवमंदिर, गंधर्वगीति, अमृतपुर, लक्ष्मीधरपुर, किन्नरपुर, मेघकूट, मर्त्यगति, चक्रपुर, रथनूपुर, बहुरव, श्रीमलय, श्रीगृह, अरिंजय, भास्कर प्रम, ज्योतिपुर, चन्द्रपुर, गंधार, मलय, सिंहपुर, श्री विजयपुर, भद्रपुर, यक्षपुर, तिलक स्थानक इत्यादि बडे २ नगर सो सब राम लक्ष्मणने वश में किये । सब पृथ्वीको जीत, सप्त रत्न कर सहित लक्ष्मण नारायण के पदका भोक्ता होता भया, सप्तरत्नोंके नाम--चक्र शंख धनुष शक्ति गदा खड्ग कौस्तुभ मणि यर रामके चार हल मूशल रत्नमाला गदा । या भांति दोनों भाई प्रभेद भाव पृथिवीका राज्य करें, तब श्रेणिक गौतमस्वामीको पूछता भया - हे भगवान् ! तिहारे प्रसादसे रामलक्ष्मणका माहात्म्य विधिपूर्वक सुना अब लवण अंकुशकी उत्पत्ति र लक्ष्मण के पुत्रोंका वर्णन सुना चाहूं हूं सो श्राप कहो, तब गौतम गणधर कहते भए - हे राजन् ! मैं कहं हं सुन- राम लक्ष्मण जगत् में प्रधान पुरुष निःकंटक राज्य भोगते भए तिनके दिन पक्ष मास वर्ष महा सुख व्यतीत होंय जिनके बड़े कुलकी उपजी देवांगन समान स्त्री लक्ष्मणके सोलह हजार तिनमें आठ पटराणी कीर्ति समान लक्ष्मी समान रति समान गुणवती शीलवती अनेक कला में निपुण महासौम्य सुन्दराकार तिनके नाम प्रथम पटराणी राजा द्रोणमेत्रकी पुत्री विशल्या दुजी रूपवती जिससमान और रूपवान नाहीं तीजी वनमाला चौथी कल्याणमाला पंचमी रतिमाला छी जितपद्मा जिसने अपने मुख की शोभाकर कमल जीते सप्तमी भगवती आठवी मनोरमा अर रामके राणी आठ हजार देवांगना समान तिनमें चार पटराणी जग प्रसिद्ध कीर्ति तिनमें प्रथम जानकी दूजी प्रभावती तीजी रतिप्रभा चौथी श्रीदामा इन सत्रोंके मध्य सीता सुन्दर लक्षण ऐमी सोहै ज्यों तारानिमें चन्द्रकला घर लक्ष्मण के पुत्र अढाईसे तिनमें कैकोंके नाम कहूं हूं सो सुन Jain Education International ४६५ वृषभ धारण चन्द्र शरभ मकरध्वज हरिनाग श्रीधर मदन अच्युत यह महाप्रसिद्ध सुन्दर चेष्टा के धारक जिनके गुण निकर सव लोकनिके मन अनुरागी र विशिल्याका पुत्र श्रीधर अयोध्या में ऐसा सोहे जैसा आकास में चन्द्रमा अर रूपवती का पुत्र पृथ्वी तितक मो पृथिवीमें प्रसिद्ध अर कल्या मालाका पुत्र महाकल्याणका भाजन मंगल र पद्मावतीका पुत्र विमलप्रभ अर वनमालाका पुत्र अर्जुनप्रभ र अतिवीर्यकी पुत्रीका पुत्र श्रीकेशी र भगवतीका पुत्र सत्यकेशी र मनोरमाका पुत्र सुपार्श्वकीर्ति ये सब ही महा बलवान पराक्रमके धारक शस्त्र शास्त्र विद्या में प्रवीण इन सब भाइनिमें परस्पर अधिक प्रीति जैसे नख मांसमें दृढ कभी भी जुदा न होवे, तैसे भाई जुदे नाही, योग्य है चेष्टा जिनकी परस्पर प्रेमके भरे वह उसके हृदय में तिष्ठे वह बाके हृदयमें तिष्ठे जैसे स्वर्ग में देवर में तैसे ये कुमार अयोध्या पुरीमें रमते भए, जे प्रानी पुण्याधिकारा हैं पूर्व पुए उपार्जे For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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