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पद्म-पराण महाशुभ चित्त हैं तिनके जन्मसे लेकर सकल मनोहर वस्तु ही आय मिले हैं रघुवंशिनिके साहे चार कोटि कुमार महा मनोज्ञ चेष्टाके थारक नगरके वन उपवनादिमें महा मनोज्ञ चेष्टासहित देवनि समान रमते भये पर राम लक्ष्मण के सोलह हजार मुकुटबन्ध राजा सूर्य हूते अधिक तेजके धारक सेवक होते भये।।।
इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनिकावि
राम लक्ष्मणकी ऋद्धि वर्णन करनेवाला चौरानवेवां पर्व एग भया ॥१४॥
अथानन्तर राम लक्ष्मणके दिन अति आनन्दसे व्यतीत होय हैं धर्म अर्थ काम ये तीनों इनके अविरुद्ध होते भये, एक समय सीता सुखसे विमान समान जो महिल तामें शरदके मेघस. मान उज्ज्वल सेज पर सोवती थी सो पिछले पहिर वह कमलनयनी दोय स्वप्न देखती भई बहुरि दिव्य वादित्रनिके नाद सुन प्रतिबोधकों प्राप्त भई निर्मल प्रभात भए स्नानादि देह क्रिया कर सखिन सहित स्वामीपै गई जाय कर पूछती भई-हे नाथ ! मैं आज रात्रिमें स्वप्न देखे ति. नका फल कहो, दोय उत्कृष्ट अष्टापद शरदके चन्द्रमा समान उज्ज्वल अर क्षोभ को प्राप्त भया जो समुद्र ताके शब्द समान जिनके शब्द कैलाशके शिखर समान सुन्दर सर्व प्राभरण कर मंडित महा मनोहर हैं केश जिनके अर उज्ज्वल हैं दाढ जिनकी सो मेरे मुख में पैठे पर पुष्पक विमानके शिखरसे प्रबल पवनके झकोर कर मैं पृथ्वीमें पड़ी तब श्रीरामचन्द्र कहते भये--हे मुन्दरि ! दीय अष्टापद मुखमें पैठे देखे ताके फलकर तेरे दीय पुत्र होंयगे पर पुष्पक विमानसे पृथी में पड़ना प्रशस्त नाही सो कछु चिंता न करो, दानके प्रभासे क्रूर ग्रह शांत होवेंगे।
अथानन्तर वसन्तरूपमयी राजा पाया तिलक जातिके वृक्ष फूले सोई उकै वपतर भर नीम जातिके वृत फूले बेई गजराज तिनपर आरूढ अर आंध मौर आये सो मानों वसन्तका धनुष अर कमल फूले सो वसन्तके बाण पर केसरी फले बेई रतिराजके तरकश अर भ्रमर गुजार करे हैं सो मानो निर्मल श्लोकोंकर बसन्त नृपका यश ग वै हैं अर कदम् फूले तिनकी सुगन्ध पवन आवै है सोई मानो बसन्त नृपके निश्वास भये अर मालतीके फल फूले सो मानों बसन्त शीतकालादिक अपने शत्रुनि को हसे हैं पर कोयल मिट वाणी बोलें है मो मानों वसन्त राजाके वचन हैं। या भांति वसन्त समय नृपतिकीती लीला धरे आया । बसन्तकी लीला लोक. निको कामका उद्वेग उपजावनहारी है बहुरि यह वसन्त मानों सिंह ही है । श्राकोट जाति वृक्षादिके फूल बेई हैं नख जाके अर कुखक जातिके वृक्षनिके फूल आए तेई भए दाढ जाके अर महारक्त अशोकके पुष्प बेई हैं नेत्र जाके पर चंच न पल्लव बेई हैं जिह्वा जिसकी ऐसा बसन्त केसरी आय प्राप्त भया लोकोंकी मनकी वृत्ति सोई भई गुफा तिनमें पैठा महेंद्रनामा उद्यान नंदनवन समान सदा ही सुन्दर है सो बसन्त समय अति सुन्दर होता भया, नाना प्रकारके पुष्पनिको पाखुडी अर नाना प्रकारकी कंपल दक्षिण दिशिकी पवनकर हलती भई सो मानों उन्मत्त भई घूमें हैं अर वापिका कमलादिक कर आच्छादित पर पक्षिनिके समूह नाद करे हैं अर लोक सिवाणोंपर तथा तीर पर बैठे हैं अर हंस सारस चकवा कौंव मनोहर शब्द करे हैं पर कारंड बोल रहे है इत्यादि मनोहर पक्षीनिके मनोहर शब्दकर रागी पुरुषनिको राग उपजाचे हैं, पक्षी जल में पड़े हैं
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