________________
४६४
पद्म-पुराण अर कही रत्नपुर ऊपर हमारी शीघ्र ही तयारी है तातै पत्र लिख सर्व विद्याधरोंको बुलावो रण का सरंजाम करायो।
तब विराधितने सवोंको पत्र पठाये वे महासेना सहित शीघ्र ही आए लक्ष्मण रामसहित सव नृपों को लेकर रत्न पुरकी तरफ चले जैसे लोकपालों सहित इन्द्र चले, जीत जिनके सन्मुख है नाना प्रकारके शस्त्रोंके समूह कर आच्छादित करी है सूर्यको किरण जाने, सो रत्नपुर जाय पहुंचे उज्ज्वल छत्रकर शोभित, तब राजा रत्नरथ परचक्र ाया जान अपनी समस्त सेनासहित युद्धको निकसा, महातेज कर सो चक्र करोंत कुठार बाण खडग वरछी पाश गदादि आयुध निकर तिनके परस्पर महा युद्ध भया, अप्सरोंके समूह युद्ध देख योधावों पर पुष्पवृष्टि करते भए, लदमण परसेनारूप समुद्रके सोखिवेको वडवानल समान आप युद्ध करनेको उद्यमी भया, परचक्रके योधा रूप जलचरोंके क्षयका कारण सो लक्ष्मण के भयकर रथोंके तुरंगोंके हाथियोंके असवार सव दशों दिशाओंको भागे अर इन्द्रसमान है शक्ति जिनकी, ऐसे श्रीराम अर सुग्रीव हनूमान इत्यादि सब ही युद्धको प्रवर्ते इन योधाओंकर विद्याधरोंकी सेना ऐसे भागी जैसे पवन कर मेष पटल विलाय जावें तब रत्नरथ अर रत्नरथके पुत्रोंको भागते देख नारदने परम हर्षित होय ताली देय हंसकर कहा अरे रत्नरथके पुत्र हो ! तुम महाचपल दुराचारी मंदबुद्धि लक्ष्मण के गुणोंकी उच्चता न सह सके सो अब अपमानको पाय क्यों भागो हो तब उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया उसी समय मनोहर कन्या अनेक सखिगों सहित रथपर चढकर महा प्रेमकी भरी लाणके समीप आई, उसे देखकर लक्ष्मण क्रोधरहित भए, भ्रकुटी चढ रही थी सो शीतल वदन भए कन्या अानन्दकी उपजायनहारी, तब राजा रत्नरथ अपने पुत्रोंसहित मान तज नाना प्रकारकी भेट लेकर श्रीराम लक्ष्मणके समीप आया । राजा देश कालकी विधिको जाने है अर देखा है अपना अर इनका पुरुषार्थ जिसने । तब नारद सबके बीच रत्नरथको कहते भए-हे रत्नरथ अब तेरी क्या वार्ता ? तू रत्नरथ है ? कै रजरथ है वृथा मान करे हुता सो नारायण बलदेवों कहा मान अर ताली वजाय रत्नरथके पुत्रोंसे हंसकर कहता भया—हो रत्नरथके पुत्र हो ! यह वासुदेव जिनको तुम अपने घरमें उद्धत चेष्टा रूप होय मनमें आया सो ही कही अब पायन क्यों पडो हो ? तब वे कहते भए-हे नारद ! तिहारा कोप भी गुण करे जो तुम हमसे कोप किया तो बडे पुरुषोंका सम्बन्ध भया, इनका सम्बन्ध दुर्लभ है। या भांति क्षणमात्र वार्ता कर सत्र नगरमें गए । श्रीरामको श्रीदामा परणाई, रति समान है रूप जाका, उसे पायकर राम आनन्दसे रमते भए अर मनोरमा लक्ष्मणको परणाई सो साक्ष न मनोरमा ही है । या भांति पुण्यके प्रभाव कर अद्भुत वस्तुकी प्राप्ति होय है तातें भव्य जीव सूर्यसे अधिक प्रकाश रूप जो वीतरागका मार्ग उसे जानकर दया धर्मकी आराधना करो ॥ इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ ताकी भाषा वचनिकाविौं रामकू श्रादामाका
लाभ अर लक्ष्मण मनोरामाका लाभ वर्णन करनेवाला त्राणवेवां पर्वा पूर्ण भया ।। ६३ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org