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तिरानवेवा पर्व प्रतिमा पथराई नगरी सब उपद्रवरहित भई, वन उपवन फल पुष्पादिक कर शोभित भए, वापिका सरोवरी कमलोंकर मंडित सोहती भई, पक्षी शब्द करते भए, कैलाशके तटसमान उज्जल मंदिर नेत्रों को आनन्दकारी विमान तुल्य सोहते भए अर मर्व किमाण लोक संपदाकर भरे सुखमू निवास करते भए गिरिक शिखर समान ऊचे अनाजोंके ढेर गावोंमें सोहते भए स्वर्ण रत्नादिककी पृथिवी में विस्तीर्णता होती भई सकल लोक सुखी रामके राज्यमें देशों ममान अतुल विभूतिके धारक धर्म अर्थ काममें तत्पर होते भए शत्रुध्न मथुरामें राज्य करे, रामके प्रतारसे अनेक राजाओं पर आज्ञा करता सोहै जैसे देवोंमें वरुण सोहे या भांति मथुरापुरीका ऋद्धिके धारी मुनिनिके प्रताप कर उपद्रव दूर होता भया । जो यह अध्याय यांचे सुने सो पुरुष शुभनाम शुभगोत्र शुभसाता वेदनीका बंध करै । जो साधुवोंकी भक्तिविष अनुरागी होय अर साधुवोंक' समागम चाहे वहीं मनवांछित फलको प्राप्त होय, या साधुवोंके संगको पायकर धर्मको आराधनकर प्राणी सूर्य से भी अधिक दीप्तिको प्राप्त होवें हैं। इति श्रीरविणेणाचार्यविरचित महापद्मा गण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा बचानकावणे मथुराका उपसर्ग
निवारण वर्णन करनेवाला बानवेवां पर्व पूर्ण भया ।।१२॥
अथानन्तर विजियाकी दक्षिण श्रेणिमें रत्नपुरनामा नगर वहां राजा रत्नरथ उसकी राणी पूर्णचन्द्रानना उसके पुत्री मनोरमा महारूपवती उसे यौवनयती देख राजा ताके वर दूहवेकी बुद्धिकर व्याकुल भया, मंत्रियोंसे मंत्र कियाकि यह कुमारी कौनको परणाऊ या भांति राजा चिंतासंयुक्त कईएक दिन गए एक दिन राजाकी सभामें नारद आया राजाने बहुत सन्मान किया नारद सबही लौकिक रीतियोंमें प्रवीण, उसे राजाने पुत्रीके विवाहनेका वृत्तांत पूछा तब नारदने कही रामका भाई लक्ष्मण महा सुन्दर है जगतमें मुख्य है चक्रके प्रभाव कर नवाए हैं समस्त नरेंद्र जिसने ऐसी कन्या उसके हृदयमें आनन्ददायिनी होवे जैसे कुमुदिनीके वनको चांदनी आनन्द दायिनी होय | जब या भांति नारदने कही तब रत्नरथके पुत्र हरवेग मनोवेग वायुवेगादि महा. मानी स्वजनोंके घातकर उपजा है वैर जिनके प्रलयकालकी अग्नि समान प्रज्वलित होय कहते भए-जो हमारा शत्रु जिसे हम मारा चाहे उसे कन्या कैसे देखें यह नारद दुराचारी है, इसे यहां से काढो, ऐसे वचन राजपुत्रोंके सुन किंकर नारद पर दौड़े तब नारद आकाश माग विहार कर शीघ्र ही अयोध्या लक्ष्मण पै पाया अनेक देशान्तरकी वार्ता कह रत्नरथ की पुत्री मनोरमाका चित्राम दिखाया, सो वह कन्या तीनलोककी सुन्दरियोंका रूप एकत्र कर मानों बनाई है । सो लक्ष्मण चित्रपट देख अति मोहित होय कामके वश भया यद्यपि महा धीर वीर है तथापि वशीभूत होय गया, मन में विचारता भया जो यह स्त्रीरत्न मुझे न प्राप्त होय तो मेरा राज्य निष्फन अर जीतव्य वृथा । लक्ष्मण नारदसे कहता भया-हे भगवान् ! आपने मेरे गुणकीर्तन किये अर उन दुष्टोंने आपसे विरोध किया, सो वे पापी प्रचण्डमानी महा चुद दुरान्मा कार्यके विचारसे रहित हैं उनका मान मैं दूर करूंगा । आप समाथानमें चित्त लायो तिहारे चरण मेरे सिर पर हैं अर उन दुष्टोंको तिहारे पायन पाडूगा ऐसा कहकर विराधित विद्याधरको बुलाया
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