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इक्यानवेवा प
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बुलाया | एक आसनपर राणी अर यह बैठे रहे ताही समय राजा दूरका चला अचानक आया र याहि महल में देखा सो राणीने मायाचार कर कही — जो यह बन्दीजन हैं भिक्षुक है तथापि राजाने न मानी । राजाके किंकर ताहि पकडकर नृपकी आज्ञातें आठो अंग दूर करने के अर्थ नगर के बाहिर लेजाते हुते सो कल्याणनामा साधु ने देख कही -- जो तू मुनि होय ती तोहि छुडावें तत्र याने मुनि होना कबूल किया तब किंकरानिसे छुडाया सो मुनिहोय महातप कर स्वर्ग में ऋजु मनका स्वामी देव भया । हे श्रेणिक ! धर्मसे कहा न होय ? अथानन्तर मथुरावि चंद्रभद्रं राजा ता राणी या ताके भाई सूर्य देव श्रग्निदेव मुनदेव र आठ पुत्र तिनके नाम श्रीमुख समुख व इन्द्रख प्रमुख उमुख परमुख अर राजा चंद्रभद्र के दूजी राणी कनकना तकि वह कुलवर नाना का जीव स्वर्ग में देव होय तहांत चक्कर अचल नामा पुत्र भया सो कजावान अर गुगनिकर पूर्ण सर्वं तो कके मनका हरणहारा देव कुमारतुल्य क्रीडामें उद्यमी भया ।
मेरा अचलकु
अधानन्तर एक अौंकनामा मनुष्य धर्म की अनुमोदनाकर श्रावस्ती नगर में एक कपनामा पुरुष ताके अंगिका नामा स्त्री उसके अपनाना पुत्र मा सो अधिनयी तव कंपने आपको घर से निकाल दिया सो महादुखी भूमिमें भ्रमण करै अर अचलनामा कुमार पिताकू अविलम सो अचलकुमारकी बडी मात्रा धरा उसके तीन भाई अर या पुत्र तिन्होंने एकांत में अचलके मारणेका मंत्र किया सो यह वार्ता अचलकुमारी माताने जानी तर पुत्र भगा दिया सो तिलक वनमें उसके पांनमें कांटा लगा सो काका पुत्र अप काठका भार लेकर आवै सो अचलकुमारको कांटेके दुखसे करुणावन्त देखा तब अपने काष्ठका भार मेल से कुमार का कांटा काढ कुमारको दिखाया सो कुमार अति प्रसन्न नया अर अप को कहामार नाम याद राखि अर मोहि भूपति ने मेरे निकट आ । इस भांति कह अपको विदा किया सो अप गया अर राजपुत्र महादुखी कौशांबी नगरके विषै याया महापराक्रमी सो वाण विद्याका गुरु जो विशिवाचार्य उसे जीतकर प्रतिष्ठा पाई हुती सो राजने बलपारको नगर में ल्यागकर अपनी इन्द्रदत्ता नाना पुत्री परिणाई अनुक्रमका पुण्यके प्रभाव से राज पाया सो अंगदेश आदि अनेक देशको जीतकर महा प्रतापी मथुरा चाया नगर के बाहिर डेरा दिया बडी सेना साथ सब सामने सुनाकि यह राजा चन्द्रभद्रका पुत्र अचलकुमार हैं सो सब श्राय मिले राजा चन्द्रभद्र अना रहगया । तब राणी धराके भाई सूर्यदेव अग्निदेव हुनदेव इसको संधि करने ताई भेने सोये जायकर कुमारको देख लिखे होय भागे पर बराके आठ पुत्र हू भाग गए । अचलकुमारकी माता आय पुत्रको लेगई पितासे मिलाया, पिताने याको राज्य दिया । एकदिन राजा अचलकुमार नटों का नृत्य देखे था ताही समय अप आया जाने इसका वनमें कांटा काढा था सो ताहि दरवान थक्का देव काठे हुते सो राजाने मने किए पर आपको बुलाया बहुत कृपा करी और जो वाकी जन्मभूमि श्रावस्ती नगरी हुती सो ताहि दई और ये दोनों परममित्र भेले ही रहें | एक दिवस महासंपदा के भरे उद्यान में क्रीडाको गये सो यशसमुद्र आचार्यको देखकर दोनों
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