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________________ पा-पुराण पर प्रारूढ अनेक राजा संग चले सो तिनकर ऐसा सोहता भया जैसा देवनिकर मण्डित देवेंद्र सोहै राम लक्ष्मणकी भाई अधिक प्रीति सो तीन मंजिल भाईके संग गये तब भाई कहता भया-हे पूज्य पुरुषोत्तम ! पीछे अयोध्या जावो मेरी चिंता न करो मैं आपके प्रसादतें शत्रुनिको निस्सन्देह जीतूंगा तब लक्ष्मण ने समुद्रावर्त नामा धनुष दिया, प्रज्वलित है मुख जिनके पवन सारिखे वेगको धरे ऐसे बाण दिये अर कृतांतवक्रको लार दिया और लक्ष्मणसहित राम पंछे अयोध्या आये परंतु भाईकी चिंता विशेष । अथानन्तर शत्रुघ्न महाधीर बडी सेना कर गंयुक्त मथुराकी तरफ गया अनुक्रमसे यमुना नदी के तीर जाय डेरे दिये जहां मंत्री महासूक्ष्मबुद्धि मंत्र करते भये । देखो, इस बालक शत्रुघ्न की बुद्धि जो मधुके जीतवेकी शंछा करी है । यह नयवर्जित केवल अभिमान कर प्रवर्ता है, जा मधुने पूर्व राजा मान्धाता रण में जीता सो मधु देवनिकर विद्याथरनिकर न जीता जाय, ताहि यह कैसे जीतेगा ? राजा म्धु सागर समान है उछलते पियादे तेई भये उतंग लहर अर शत्रुनिके समूह तेई भये ग्रह तिनकर पूर्ण ऐसे मधुसमुद्रकूत्रुध्न भुजानिकर तिरा चाहं है सो कैसे तिरेगा तशा मधुभूपति भयानक वन समान है तामें प्रवेशकर कौन जीवता निसर। कैसा है राजा मधुरूप वन ? पयादेके समूह तेई हैं वृक्ष जाहाँ अर माते हाथिनिकर महा भयकर अर घोडनिके समूह तेई हैं मृग जहां, ये वचन मंत्रिनिके सुन कृतांतवक्र वहता भया । तुम साहस छोड ऐसे काय ताके वचन क्यों कहो हो ? यद्यपि वह राजा मधु चमरेंद्र कर दिया जो अमघ त्रिशूल ताकर अति गर्दित है तथापि ता मधुको शत्रुध्न सुन्दर जीतेगा जैसे हाथी महाबलवान है अर सूंडकर वृक्ष निको उपाडे है मद भरे है तथापि ताहि सिंह जीते है यह शत्रुघ्न लक्ष्मी अर प्रताप कर मंडित है महार लवान है शूरवीर है महा पडित प्रवीण है अर याके सहाई श्रीलक्ष्मण हैं अर आप सबही भले भले मनुष्य याके संग हैं तातें यह शत्रुघ्न अवश्य शत्रुको जीतेगा जब ऐसे वचन कृतांतवक्रने कहे तव सबही प्रसन्न भए अर पहिलेही मंत्रीजननिने जो मथुरामें हलकारे पठाये हुते ते आयकर सर्व वृत्तांत शत्रुघ्नसे वहते भए-हे देव ! मथुरा नगरीकी पूर्व दिशाकी ओर अत्यंत मनोग्य उपवन है तहां रणवास सहित राजा मधु मै है । राजाके जयंती नामा पटराणी है ता सहित वनक्रीडा कर है जैसे स्पर्श इंद्रियके वश भया गजराज बंधन में पड़े है, तैसे राजा मोहित भया विषयनिके बंधन में पडा है, महा कामी आज छठा दिन है कि सर्व राज्य काज तज प्रमादके वश भया वनमें तिष्ठै है कामान्ध मूर्ख तिहारे अागमनको नाहीं जाने है, अर तुम ताके जीतको बांछा करी है ताकी ताहि सुध नाही अर मंत्रिनिने बहुत समझाया सो काहूकी बात धारे नाहीं, जैसे मृढ रोगी वैयकी ओषध न थारे इस समय मथुरा हाथ आवे तो आवे अर कदाचित मधु पुरीमें धसा तो समुद्र समान अथाह है, यह वचन हलकारोंके मुख से शत्रुघ्न सुनकर कार्य में प्रवीण ताही समय बलबान योधानिके सहित दौडकर मथुरा गया, अर्ध त्रिके समय सब लोक प्रमादी हुते अर नगरी राजारहित हुती सो शत्रुघ्न नगरमें जाय पैठा जैसे योगी कर्म शम कर सिद्धपुरीमें प्रवेश करे, तैसे शत्रुघ्न द्वारको चूरकर मथुरा में प्रवेश करता भया ।मथुरा इनमानोग्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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