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________________ - - नवाशेवा पर्वा __ तब वंदीजननिके शब्द होते भए जो राजा दशरथका पुत्र शत्रुघ्न जयवंत होहु ये वचन सु के नगरीके लोक परचक्रका आगम जान अति व्याकुन भर. जैसे लंका अंगदके प्रवेश कर आ व्याकुल हुती तो मथुरामें व्याकुलता भई । कैयक कायर हृदय की धरनहारी स्त्री हुकी गिन भयकर गर्भपात होय गये, अर कैयक महाशूवीर कलकलाट शब्द मन तत्काल सिंहकी न्याई उठे शत्रुन रानमंदिर गया आयुध माना अपने हाथ कर लीनी अर स्त्री बालक आदि जे नग रीके लोक अतित्रासाप्राप्त भये तिनको महा मधुर वचन का धीर्य बंधाया जो यह श्रीरामका राज्य है यहां काहू को दुःख नाहीं तर नगरीके लोक त्रामरहेत भये पर शत्रुध्नको मथुरा में आया सुन राजा मधु महाकोप कर उपबनते नगरको आया सो मथुरा में शत्रुनके सुभटों की रक्षा कर प्रवेश न कर सका जैसे मुनिके हृदयमें मोह प्रवेश न कर सके, नाना प्रकार के उपाय कर प्रवेश न पाया अर त्रिशून हूते रहित भया तथापि महा अभिम नी मधुने शत्रुध्नसे संधि न करी शुद्ध ही को उग्रमी भया तब शत्रुध्नके योधा युद्ध को निकसे दोनों सेना समुद्र मम'न मिना. परस्पर युद् भया, रथनिके तथा हाथिनके तथा घोडनिके असवार परस्पर युद्ध करते भये पर परस्पर पयादे भिडे, नाना प्रकारके आयुध निके धारक मा ममर्थ नाना प्रकार श्रायुधनि कर युद्ध करते भये ता समय परसेनाके गर्व को न सहता संता व क्र सेनापति परसेनामें प्रवेश करता भया । नाहीं निवारी जाय है गति जाकी, तहां रगक्रीडा करे है जैसे स्वयम्भू रमण" उद्यानमें इन्द्र क्रीडा करे, तब मधु का पुत्र लवणाणवकुमार याहि देख युद्ध के अर्थ आया अपने बाणनिरूप मेषकर कृतवक रूप पर्वतका आच्छादित करता भवा, कृतांतवक भी आशीविष तुल्य बाणनिकर ताके बाण छेदता भया, अर धरती आकाशको अपने बाण नि कर व्याप्त पारा भया, दोऊ महा योद्वा पिंह समान बलवान गजनिपर चढे क्रोधसहित युद्ध करते भये, बाने बाको रथरहित किया अर बाने वाको, बहुरि कृनांतवक्रने लवणाणवके वक्षस्थल में बाण लगाया अर ताका वषतर भेदा तय लवणार्णव कृतांतवक्र ऊपर तोमर जातिका शस्त्र चलावता भया क्रोध कर लाल नेत्र जाके दोनों घायल भए, रुधिर कर रंग रहे हैं वस्त्र जिनक, महा सुभटताके स्वरूप दोनों क्रोध कर उद्धा फूले टेसूके वृक्ष समान सोहते भए । गदा खड्गःचक्र इत्यादि अनेक आयुधनिकर परस्पर दोऊ महा भयंकर युद्ध करते भए । बल उन्नाद विपाद के भरे बहुत बेर लग युद्ध भया, कृतांतवाने लवणाविके वक्षस्थल में घाव किया, गो पृथ्वी में पड़ा जैसे पुण्यके क्षत स्वर्गवासी देव मध्य लोकमें आय प, लवणार्णव का प्राणान्त भया, तब पत्रको पडा देख मधु कृ. तांतवक्र पर दौडा तब शत्रुनने मधु को रोका, जैसे नदी के प्रवाहको पर्वत रोके, मधु महा दुस्सह शोक अर कोषका भरा युद्ध करता भया सो श्राशीविपकी दृष्टि समान मधु की दृष्टि शत्रुसकी सेनाके लोक न सहारते भए जैसे उग्र पवनके योगते पत्रनिके समूह चलायमान होंय तैसे लोक चलायमान भए बहुरि शत्रुघ्नको मधुके सन्मुख जाता देख धीर्य प्राप्त भए । शत्रुके भय कर लोक तबलग डरें जब लग अपने स्वामीको प्रबल न देखें अर स्वामीको प्रसन्न वदन देख धीर्य को प्राप्त होंय । शत्रुभ उत्तम रथ पर प्रारूढ मनोग्य धनुप हाथमें सुन्दर हारकर शोभे है वक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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