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तिरासीवां प
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अथानन्तर राजा श्रेणिक नमस्कार कर गौतम गणधरको पूछता भया, हे देव श्रीराम लक्ष्मण की लक्ष्मीका विस्तार सुनने की मेरे अभिलाषा है तब गौतमस्वामी कहते भए - हे श्रेणिक राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न इनका वर्णन कौन कर सके तथापि संक्षेपसे कहे हैं—राम लक्ष्मण के विभवका वर्णन - हाथी घरके वियालीस लाख र रथ एते ही घोडे नौ कोटि, पयादे व्यालीस कोटि र तीन खंडके देव विद्यघर सेवक रामकेरल चार हल मूगल रत्नमाला गदा श्रर लक्षमणके साथ संख चक्र गदा खड्ग दंड न गशय्या कौस्तुभमणि राम लक्ष्मण दोनों ही वीर महाधीर धनुषधारी र तिनका घर लक्ष्मीका निवास इंद्रके भवन तुल्य ऊंचे दरवाजे श्रर चतुश्शाल नामा कोट महा पर्वत के शिखर समान ऊंचा और वैजयन्ती नामा सभा महामनोज्ञ श्रर प्रासादकुदुम्बनामा अत्यन्त उसग दशदिशा के अवलोकनका गृह अरविंध्याचल पर्वत सारिखा वर्धमानक नामा नृत्य देखवेका गृह अर अनेक सामग्री सहित कार्य करनेका गृह अर कूकडेके अंडे समान महाअद्भुत शीतकाल में सोवनेका गर्भगृह अर ग्रीष्ममें दुपहरीके विराजवेका धारा मंडपगृह इकथंभा महामनोहर, घर राणीयोंके घर रत्नमई महासुन्दर, दोनों भाईयों की सोयवेकी शय्या जिनके सिंहों के आकार पाए, पद्मराग मणिके यति सुन्दर अम्भ दवाएड नामा विजुरीकासा चमत्कार थरे वर्षा ॠतुमें पौढवेका महिल र महाश्रेष्ठ उगते सूर्य समान सिंहासन र चन्द्रा तुल्य उज्ज्वल चमर पर निशाकर समान उज्ज्वल छत्र अर महा सुन्दर विषमोचक नाम पावडी तिनके प्रभाव से सुखसे आकाशमें गमन करें और अमोलिक वस्त्र पर महा दिव्य श्राभरण अभेद्य वर महा मनोहर मणियोंके कुण्डल र अमोघगदा खड्ग कनक बाण अनेक शस्त्र महा सुन्दर महारण के जीतनहारे अर पचास लाख हल कोटिसे अधिक गाय अक्षय भण्डार घर अयोध्या आदि अनेक नगर जिनमें न्यायको प्रवृत्ति, प्रजा सब सुखी संपदाकर पूर्ण र महा मनोहर वन उपवन नानाप्रकार फन पुष्पों शोभित अर महा सुन्दर स्वर्ण रत्नमई सिवाखोंकर शोभित क्रीडा करवे योग्य वाषिका अर पुर तथा ग्रामों में लोक अति सुखी जहां महिल
नाहीं जिनके गाय
अति सुन्दर अर किसाणोंको किसी भांतिका दुख के मूत्र सर्व भांतिके सुख र लोकपालों जैसे सामंत और इन्द्र तुल्य विभवके धरण हारे महा संजवन्त अनेक राजा सेवक र रामके स्त्री आठ हजार र लक्ष्मण के स्त्री देवांगना समान सोलह हजार जिनके समस्त सामग्री समस्त उपकरण मनवांछि सुख के देनहारे । श्रीरामने भगवान के हजारों चैत्यालय कराये जैसे हरिषेण चक्रवर्तीने कराए थे वे भव्यजीव सदा पूजित महा ऋद्धिके निवास देशग्राम नगर वन गृह गली सर्व ठौर २ जिनमंदिर करावते मयं सदा सर्वत्र धर्मकी कथा लोक श्रतिसुखी सुकौशल देशके मध्य इन्द्रपुरी तुल्य अयोध्या जहां अति उतंग जिनमंदिर जिनका वर्णन किया न जाय पर कडा करवेक पर्वत मानों देवोंक क्र डा करवेकं पर्वत हैं प्रकाशकर मंडित मानों शरद के बादर ही हैं श्रयं ध्याका कोट श्रति उतंग समुद्रकी वेदिका तुल्य महाशिस्वर कर शोभित स्वर्ण लोंका समूह अपनी किरणां कर प्रकाश किया है आकाशमें जिसने जिसकी शोभा मनसे भी अगोचर, निश्चयसेती यह अयोध्या नगरी पवित्र मनुष्योंकर भरी सदा
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