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________________ पद्म-पुराण निकं अक्षत डारती भई, सम्पूर्ण पूर्णमापीके चन्द्रमा समान राम कमलनत्र अर वर्षाती घटा समान लक्ष्मण शुभ लक्षण तिनके देखवेको नर नारी पावते भए अर समस्त कार्य तज झरोखोंमें बैठी नारी जन निरखे हैं सो मानों कमलोंके वन फूल रहे हैं पर स्त्रीनिके परस्पर संघट्टर मोंतिनिके हार टूटे सो मानो मोतितिकी वर्षा होय है स्त्रीनिके मुखसे ऐपी पनि निकसे-ये श्रीराम जाके समीप राजा जनककी पुत्री सीता बंठी जाकी माता राणी विदेहा है अर श्रीरामने साहसगति विद्याधर मारा वह सुग्रीवका अकार पर पाया हुता विद्याधरनिमें दैत्य कहावे अर यह लक्षमण रामका लघु र इन्द्र तुल्य पर क्रम जाने लंकेश्वरको चक्रकर हता, अर यह सुग्रीव जाने रामसे मित्रता करी अर भामण्डल सीता का भाई जिसको जन्मसे ही देव हर लेगम बहुरि दयाकर छोडा सो राजा चंद्रगनिके पला आकाशसे वनमें गिरा राज ने लेकर राणी पुपावतीको सौंपा देवोंने काननमें कुंडल पहराकर आकाशसे डाला मो कुंडलकी ज्योतिकर चंद्रसमान मसा तातै भामण्डल नाम धरा अर यह राजा चन्द्रोदयका पुत्र विराधित पर यह पवनका पुत्र नान कपिध्वज या भांति आश्चर्यकर युक्त नगरकी नारी बातों क ती भो ॥ अथानन्तर राम लक्ष्मण राजमहिल में पधारे सो मंदिर शिखर तिष्ठनी दोनो माता पुत्रनिके स्नेहमें तहर जिनके स्तनसे दुग्ध झरे महा गुणनिकी घर गहरी कौशिल्या सुमित्रा अर के कई सुप्रभा चारों माता मंगलमें उद्यमी पुत्रोंके समीप आई र म लक्ष्मण पुष्पक विमानसे उतर मातावोंसे मिले मातानोंको देख हर्षको प्राप्त भए कमल समान नेत्र दोनों भाई लोकपालसमान हाथ जोड नम्रीभूत होय अपनी स्त्रीयों सहित माताको प्रणाम करते भए वे चारों ही माता अनेक प्रकार असीस देती भई तिनकी असीस कल्याण की बरणहारी है अर चारों ही माता राम लक्ष्मणको उरसे लगाय परम सुखको प्रप्त भई उनका सुख वे ही जाने कहिवेमें न आवे बारम्बार उरसे लगाय सिर पर हाथ धरनी भई, अानन्द के अश्रुगात कर पूर्ण हैं नत्र जिनके, परस्पर माता पुत्र कुशल क्षेम सुख दुखकी वार्ता पूछ परम संतोषको प्राप्त भए , माता मनोरथ करती थीं सो हे श्रेणिक ! बांछासे अधिक मनोरथ पूण भए वे माता योधावोंकी जननहारी साधुवोंकी भक्त जिन धर्ममें अनुक्त सुन्दरचित्त बेटावोंकी बहू सैकडों तिन को देख चारों ही अति हर्षित भई अपने योधा पुत्र तिनके प्रभाव कर पूर्व पु के उदय कर अति महिमा संयुक्त जगतमैं पूज्य भई राम लक्ष्मणका सागरां पर्यंत कंटकरहित पृथिवीमें एक छत्र राज्य भया सबपर यथेष्ट आज्ञा करते भए, राम लक्ष्मणका अयोध्यामें आगमन अर मातावोंसे तथा भाईयों से मिलाप । यह अध्याय जो पढ़े सुने शुद्ध हैं बुद्धि जाकी सो पुरुष मनवांछित मंपदाको पावै, पूर्ण पुण्य उपार्जे शुभमति एक ही नियम दृढ होय भावनकी शुद्धतासे करे तो अतिप्रतापको प्राप्त होय, पृथिवी में सूर्य समान प्रकाशको करे ताः अबत तज नियमादिक धारण करो। इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वनिकाविषै अयोध्यामें राम लक्ष्मणका आगमन वर्णन करनेवाला वयासीवां पर्व पूर्ण भया ।। ८२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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