________________
पा पुराण
निष्ठनी होयगी । निर्दई रावणने लक्ष्मणके शक्ति लगाई सो न जानिए जीवे है कै नाहीं । हाय दोनों दुर्लभ पुत्र हो, हाय सीता ! तू पतिव्रता काहे दुःखको प्राप्त भई । यह वृत्तांत कौशभ्याके मुख सुन नारद अति खेखिन्न भया बीण धरतीमें डार दई अर अचेत होय गया बहुरि सचेत होय कहता भया-हे माता ! तुम शोक तनो में शीघ्रडी तिहारे पुत्रनिकी वार्ता क्षेम कुशलकी लाऊ हूं मेरे सब बातमें सामर्थ्य है यह प्रतिज्ञाकर नारद बीणको उठाया कांधे धरी आकाश मार्ग गमन किया पवन समान है वेग जाका अनेक देश देखता लंकाकी ओर चला सो लंकाके समीप जाय विचारी-राम लक्ष्मणकी वार्ता कौन भांति जानिव में आवै जो रामलक्ष्मण की वार्ता पूछिए तो रावणके लोकनिसे विरोध होय तातें रावण की वार्ता पूछिए तो योग्य है, रावणकी वार्ता कर उनकी वार्ता जानी जायगी । यह विचार नारद पद्म सरोवर गया तहां अन्तःपुर सहित अंगद क्रीडा करता हुता ताके सेवकनिको रावण की कुशल पूछी । वे किंकर सुनकर क्रोधरूप होय कहते भए यह दुष्टतापस रावना मिन्नापी है याको अंगदके समीप ले गए जो रावणकी कुल पूछ है । नारदने कहा-मेरा रावणसे कछु प्रयोजन नाहीं तब किंकरनिने कही तेरा कछु प्रयोजन नाही तो रावणकी कुल क्यों पूछे था । तब अंगदने हंसकर कहा इस तापसको पद नाभिक निकट ले जावो सो नारद को खींचकर ले चले । नारद विचारै है-न जानिए कौन पद्मनाभी है कौशल्याका पुत्र होय तो मोसे ऐसी क्यों होय, ये मोहि कहां लेजाय हैं, मैं संशयमें पडा हूं. जिन शासनके भक्त देव मेरी सहाय करो, अंगदके किंकर याहि विभीषण के मन्दिर श्रीराम विराजे हुते तहां लेगए श्रीराम दूरसे देख याहि नारद जान सिंहासनसे उठे अति आदर किया किंकरनिसे कहा-इनसे दूर जायो।
नारद श्रीराम लक्ष्मणको देख अति हर्षित भया आशीर्वाद देकर इनके पास बैठा तब राम बोले अहो चल्लक ! कहांसे आये बहुत दिनमें आए हो नीक हो तब नारदने कहा-तिहारी मावा कष्टक सागरमें मग्न है सो वार्ता कहिवेभो तिहारे निकट शीघ्र ही पाया हूं, कौशल्या माता महा सती जिनमती निरन्तर अश्रुपात डारे है अर तुम पिना महा दुखी है जैसे सिंही अपने बालक विना व्याकुल होय तैसे अति व्याकुल भई विलाप करै है जाका विलाप सुन पाषाण भी द्रवीभूत होय तुमसे पुत्र माताके आज्ञाकारी अर तुम होते माता ऐसी कष्टरूप रहै यह आश्चर्य की बात, वह महा गुणवती सांझ सकारेमें प्राणरहित होयगी, जो ताहि व देखोगे तो तिहारे वियोग रूप सूर्यकर सूक जायगो तात मोपै कृपा करो उठो ताहि शीघ्र ही देखो या संसारमें माना समान पदार्थ नाही तिहारी दोनों मातानिके दुख करके कैकई सुप्रभा सब ही दुखी हैं। कौशल्या सुमित्रा दोनों मरण तुन्य होय रही हैं आहार नीद सब गई रात दिन मांस डार हैं तिनकी स्थिरता तिहारे दर्शन ही से होय जैसे कुरवि विलाप करे तैसे विलाप करें हैं भर सिर पर उर कूटे हैं दोनों ही माता तिहारे वियोग रूप अग्निकी ज्वाला कर जरे हैं तिहारे दशनरूप अमृतकी धारकर उनका आताप निवारो। ऐसे नारदके वचन सुन दोनों भाई मातानिके दूखकर अति दुःखी भये शस्त्र डार दीये अर रुदन करने लगे तब सकल विद्याधरनिने पीर्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org