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________________ इक्यासीगां पर बंधाया । राम लक्ष्मणसे कहते भए-ग्रहो नारद ! तुमने हमारा बड़ा उपकार किया, हम दराचारी माताको भूल गए सो तुम स्मरण कराया तुम समान इमारे और वल्लभ नाही, वही मनुष्य महा पुण्यवान् हैं जो मातके विनयमें तिष्ठे हैं दाम भए माताकी सेवा करें जे माताका उपकार विस्मरण करें हैं वे महा कृतघ्न हैं या भॉति माताके स्नेह कर व्याकुल भया है चित्त जाका दोनों भाई नारदकी अति प्रशंसा करते भए । अथानन्तर श्रीराम लक्ष्मणने ताही समय अति विभ्रम चित होय विभीगको बलाया अर भामंडन सुग्रीवादि पास बैठे हैं । दोऊ भाई विभीषणसे कहते भये-हे राजन् ! इंद्रके भवन समान तेरा भवन तहां हम दिन जाते न जाने अब हमारे माताके दर्शनकी अति बांछा है हमारे अंग अति तापरूप हैं सो माताके दर्शनरूप अमृत कर शांतताको प्राप्त होवें । अब अयोध्या नगरीके देखवे को हमारा मन प्रवरता है । वह अयोध्या भी हमारी दजी माता है तब विभीषण कहता भया-हे स्वा मन् ! जो प्राज्ञा करोगे मो ही होयगा अवार ही अयोध्याको दन पठायें जो तिहारी शुभवार्ता मातायों को कहें अर तिहारे आगमकी वार्वा कहें जो मातावोंको सुख होय अर तुम कृपाकर पोडश दिन यहां ही विराजो। हे शरणागतप्रतिपालक ! मापै कपा करो ऐसा कह अपना मस्तक रामके चरण तले धरा तव राम लक्ष्मणने प्रमाण करी । अथानन्तर भले भले विद्याधर अयोध्याको पठाये सो दानों माता महल पर चढी दधियदिशाकी ओर देख रहीं हुती सो दूरसे विद्यारों को देख कौशल्या सुमित्रासे कहती भई-हे सुमित्रा, देख दोय यह विद्याधर पवनके प्रेरे मेष तुल्य शीघ्र आवै हैं सो हे श्राविके, अवश्य कन्याकी वार्ता कहेंगे यह दोनों भाईगोंके भेजे प्रावे हैं तव सुमित्राने कही तुम जो कहो हो सो ही होय । वार्ता दाऊ मातानिमें होय है तब ही विद्याधर पुष्पनिकी वर्षा करते आकाशसे उतरे प्रति हर्षके भरे भरतके निकट पाए । राजा भरत अति प्रमोद का भरा इनका बहुत सन्मान करता भया, पर यह प्रणामकर अपने योग्य आसन पर बेठे, अति सुन्दर है चित्त जिनका यथावत् वृत्तांत कहते भये । हे प्रभु, लक्ष्मणने रावणको हता विभीषणको लंकाका राज्य दिया श्रीरामको बलभद्रपद अर लक्ष्मणको नारायणपद प्राप्त भया, चक्ररत्न हाथमें आया तिन दोनों भाई के तीन खंडका परम उत्कृष्ट स्वामित्व भया, रावणका पुत्र इन्द्रजीत मेघनाद भाई कुम्भकर्ण जो बंदीगृह में थे सो श्रीरामने छोडे तिन्होंने जिनदीचा धर निर्वाण पद पाया अर गरुडेन्द्र श्रीराम लक्षमण से देशभूषणकुलभूषण मुनिके उपसर्ग निवास्विकर प्रसन्न भए थे सो जब रावणरौं युद्ध भया उस ही समय सिंहवाण अर गरुडवाण दिये, इस भांति राम लक्ष्मण के प्रतापके समाचार सुन भरत भूप अतिप्रसम भए । ताम्बूल सुगन्धादिक तिनको दिये पर तिनको लेकर दोनों माताओके समीप भरत गया, राम लक्ष्मण की माता पुत्रोंकी विभूतिकी वार्ता विद्याधरोंके मुखसे सन आनन्दको प्राप्त भई उस ही समय आकाशके मार्ग हजारों वाहन विद्यामई स्वर्ण रत्नादिकके भरे आये अर मेवमालाके समान विद्याधरनिके समूह अयोध्या माये जैसे देवनिक समूह आवे ते प्राकाशमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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