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इक्यासीवा पर्व अर वह व्याकुल होय ता समान पुत्रके स्नेहविष तत्पर तीव्र शोकके मागरविर्ष मग्न दशों दिशाकी ओर देखै महिलके शिखरमें तिष्ठना जो काग ताहि कहे है-हे वायस ! मेरा पुत्र राम आवे तो तोहि खीर का भोजन दूं ऐसे वचन कहकर विलाप करे अश्रुपातकर किया है चातुर्मास जिसने हाय वत्स तू कहां गया मैं तुझे निरंतर सुखसे लडाया था तेरे विदेश भ्रमणकी प्रीति व हांसे उपजी कहां पल्लव समान तेरे चरण कोमल कठोर पंथविष पीडा न पावें ? महा गइन वनविष कोन वृक्षके तले विश्राम करता होयगा ? मैं मन्दभागिनी अत्यन्त दुःखो मुझे तजकर तू भाई लक्ष्मण सहित किस दिशाको गया ? या भांति माता विलाप करें ता समय नारद ऋषि प्रकाशके मार्गरि आए पृथिवीमें प्रसिद्ध मदा अढाई द्वीपविणे भ्रमते ही रहें मिरपर जटा शुक्ल वस्त्र पहरे उनको समीप पावता जान कौशल्याने उठकर मन्मुख जाय नारदका आदरसहित सिंहांसन बिछाय सनमान किया तब नारद उसे अश्रुगत सहित शोकवन्नी देख पूछते भए हे, कन्याणरूपिणी तुम ऐसी दुःम्वरूप क्यों ? तुमको दुःखका कारण क्या ? सुकौशल महाराजकी पत्री लोकमें प्रसिद्ध राजा दशरथकी राणी प्रशंसा योग्य श्रीरामचन्द्र मनुष्यनिमें रत्न तिनकी माता महासन्दर लक्षण की धरण हारी तुमको कौनने रुसाई जो तिहारी श्राज्ञा न माने सो दुरात्मा है अवार ही ताका राजा दशरथ निग्रह करें तब नारदको माता कहती भई-हे देवर्षे ! तुम हमारे घर का वृतांत नाहीं जानो हो तातें कहो हो पर तिहरा जैसा वात्सल्य या घर था सो तुम विस्मरण किया कठोर चित्त होय गए अब यहां श्रावनों ही तजा अब तुम बात ही न झो। हे भ्रमण प्रिय, बहुत दिनमें आए। तब नारदने कहा-हे माता, धातुकी खंड द्वीप में पूर्व विदेह क्षेत्र वहां सरेंद्ररमण नामा नगर वहां भगान तीर्थकर देवका जन्मकल्याण भया मो इंद्रादिक देव आए, मंगवानको सुमेरुगिरि लेगए अद्भुा विभूविकर जन्माभिषेक किया सो देवादि देव सर्व पापके नाशनहारे तिनका अभिषेक मैं दख्या जाहि देखे धर्मकी बढवारी होय वहां देवनिने आनन्द से नृत्य किया श्रीजिनेंद्र के दर्शनमें अनु गरूप है बुद्धि मेरी सो महामनोहर थातकी खडविर्ष तेईस वर्ष मैंने सबसे व्यतीत किये, तुप प्रेरी मातासमान सो तुमको. चितार या जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें आया अब कोइयक दिन इस मंडलहीमें रहूंगा अब मोहि सब वृत्तांत कहो तिहारे दर्शनको पाया हूं तब कौशल्याने सव धृत्तांत रहा। मामडाका यहां प्रावना अर विद्याथरनिका यहां श्रावना अर भामण्डलको विद्याधरनिका राज्य पर राजा दशरथका अनेक राजानिसहित वैराग्य अर रामचन्द्रका नीता सहित अर लक्ष्मणके लार विदेशको गमन बहुरि सीताका वियोग सुग्रीवादिकका रामसे मिलाप र ण युद्ध लकेराकी शक्तिका लक्ष्मणके लगना बहुरि द्रोणमंघकी कन्याका तहां गान एती खबर हमको है वहरि क्या भया सो खवर हमको नाही ऐसा कहकर मा दुःखित होय अश्रुपात डारती भई घर विलाप करती भई-हाय ! हाय पुत्र तू कहां गया, शीघ्र अब मोपे वचन कह, मैं शोकके सागरमें मग्न ताहि निकास मैं पुण्यहीन तेरे मुख देखे बिना महा दुःवरूप अग्निसे दाहको प्राप्त भई ताहि साता देवो पर सीता बाला पापी रावण तोहि बंदीगृहमें डारी, महा दुखसे
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