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पद्म-पुराण
पदको प्राप्त भए सो पर्वत नानाप्रकारके वृक्ष पर लतानिकर मंडित अनेक पक्षिनके समूहकर तथा नानाप्रकार के वनचरनिकर भरा । श्रहो भव्यजीव हो ! जीवदया आदि अनेक गुणनिकर पूर्ण ऐसा जो जिनधर्मं ताके सेवन से कछु दुर्लभ नाहीं, जिनधर्म के प्रसादसे सिद्धपद अहमिंद्रपद इत्यादिके पद सबही सुलभ हैं। जम्बूनालीका जीव श्रहनिंद्र पदसे ऐरावतक्षेत्र में मनुष्य होय केवल उपाय सिद्धपदको प्राप्त होयेंगे अर मंदोदरीका पिता चारण सुनि होय महा ज्योतिको थरे अढाईद्वीप में कैलाश आदि निर्वाण क्षेत्रनिकी र चैत्यालयोंकी बंदना करते भये, देवों का है आगमन जहां सो मय महामुनि रत्नत्रय रूप आभूषण कर मंडित महाधारी पृथिवीमें विहार करें अर मारीच मंत्री महामुनि स्वर्ग में बडीऋद्धिके धारी देव भए । जिनका जैसा तप तैसा फल पाया। सीताके दृढत्रत कर पतिका मिलाप भया जाको रावण डिगाय न सका । सीताका अतुल धीर्य अद्भुतरूप महानिर्मल बुद्धि भरतार में अधिक स्नेह जो कहने में न आवै सीता महा गुणनिकर पूर्ण शीलकं प्रसादतें जगतमें प्रशंसा योग्य भई । कैसी है सीता ? एक निजाति में है संतोष जाके भवसागर की तरणहारी परम्पराय मोक्षकी पात्र जाकी साधु प्रशंसा करें। गौतमस्वामी कहैं हैं - हे श्रेणिक ! जो स्त्री विवाह ही नहीं करे बालब्रह्मचर्य धेरै सो तो महा भाग्य ही हैं और पत्रिका व्रत आदरै मन वचन कायकर परपुरुषका त्याग करें तो यह भी परम रत्न है । स्त्रीको स्वर्ग र परम्पराय मोक्ष देववे को समर्थ हैं । शीलत्रत समान और व्रत नाहीं, शील भवसागरकी नाव है । राजा मय मंदोदरीका पिता राज अवस्थामें मायाचारी हुता र कठोर परिणामी हृता, तथापि जिन धर्मके प्रसादकर राग द्व ेषरहित हो अनेक ऋद्धिका धारक मुनि भया ।
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यह कथा सुन राजा श्रेणिक गौतमस्वामीकी पूछते भए - हे नाथ ! मैं इन्द्रजीतादिकका माहात्म्य सब सुना अब राजा मयका माहात्म्य सुना चाहू हूं अर हे प्रभो ! जो पृथिवी में पतिव्रता शीलवंती स्त्री हैं निज भरतार में अनुरक्त हैं वे निश्चयसे स्वर्ग मोदकी अधिकारिणी हैं तिनकी महिमा मोहि विस्तारसू कहो । तब गणधर कहते भए जे निश्चयकर सीता समान पतिव्रता शीत को धारण करें हैं ते अल्प भवमें मोच होय हैं पवित्रता स्वर्गही जाय परम्पराय मोक्ष पावें, अनेक गुणनिकर पूर्ण । हे राजन् ! जे मन वचन काय करशीलबन्दी हैं, चित्त की वृति जिन्होंने रोकी है ते धन्य हैं, घोडनिमें हाथिनिमें लोहेनि में पाषाणमें वस्त्रनिमें जलमें वृश्चनिमें बेलनिमें स्त्रीनिमें पुरुषनिमें बडा अन्तर है सबही नारियोंमें पतिव्रता न पाइये अर सबढी पुरुषनिमें विवेकी नाहीं । जे शील रूप कुशकर मनरूप माते हाथी को वश करें ते पतिव्रता है । पतिव्रता सही कुलमें होय हैं पर वृथा पतिव्रता का अभिमान किया तो कहा ? जे जिनधर्मसे वहिर्मुख हैं ते मनरूप माते हाथीको वश करने समर्थ नाहीं, बीतरागकी वाणीकर निर्मल भया है चित्त जिनका तेई मनरूप इस्तीको विवेक रूप अंकुश कर वशीभूत कर दया शीलके मार्ग विषे चलायबे समर्थ हैं । हे श्रेणिक ! एक अभिमाना स्त्री ताकी संक्षेपसे कथा कहिए है-सो सुन, यह प्राचीन कथा प्रसिद्ध है एक ध्यानग्रामनामा ग्राम वहां नोदन नामा ब्राह्मण ताके अभिमाना नामा स्त्री सो अग्निनामा
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