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पद-पुराण देखना रुचे रागका सुनना रुचै कोमल स्पर्श रुचै, मित्रके संयोगकर सब मनोहर लगै, अर जब मित्रका वियोग होय तव स्वर्ग तुल्य विषय भी नरक तुल्य भासै अर प्रियके समागम में महा विषमवन स्वर्गतुल्य भासै महा सुंदर अमृतसारिखे रस अर अनेक वर्णके अद्भुत भक्ष्य तिनकर रामलक्ष्मण सीताको तृप्त किये अद्भुत भोजन क्रिया भई, भूमिगोचरी विद्याधर परिवारसहित अति सन्मानकर जिमाए, चन्दनादि नुगन्धके लेप किये तिनपर भ्रमर गुंजार करे हैं अर भद्रसाल नंदनादिक वनके पुष्पनिसे शोभित किए अरमहा सुन्दर वस्त्र पहिराए नानाप्रकारके रत्ननिके आभूषण दिए, कैसे हैं प्राभूषण ? जिनके रत्ननिकी ज्योतिके समूहकर दशोंदिशामें प्रकाश हो रहा है। जेते रामकी सेनाके लोक थे वे सब विभीषणने सनमान कर प्रसन्न किये सबके मनोरथ पूर्ण किये रात्रि पर दिवस सब विभीषण ही का यश करें, अहो यह विभीषण रायसवंशका आभूपण है, जाने राम लक्ष्मणकी बडी सेवा करी यह महा,प्रशंसा योग्य है मोटा पुरुष है यह प्रभावका थारक जगतमें उतंगताको प्राप्त भया, जाके मंदिर श्रीराम लक्ष्मण पधारे, या मांति विभीपणके गुण ग्रहणमें तत्पर विद्याधर होते भए । सर्व लोक सुखसे तिष्ठे राम लक्ष्मण सीता पर विभीषणकी कथा पृथिवीमें प्रवरती।
अथानन्तर विभीषणादिक सकल विद्याधर राम लक्ष्मणका अभिषेक करनेको बिनयकर उद्यमी भए तब श्रीराम लक्ष्मणने कहा अयोध्यामें हमारे पिताने भाई भरत अभिषेक कराया सो भरत ही हमारे प्रभु हैं तब सबने कही भापको यही योग्य है परन्तु भव प्राप त्रिखंडी भए तो यह मंगल स्नान योग्य ही है यामें कहा दोष है अर ऐसी सुनने में प्रावै है-भरत महा धीर है अर मन वचन काय कर भापकी सेवामें प्रवरते है विक्रियाको नाहीं प्राप्त होय है। ऐसा कह सबने राम लक्ष्मणका अभिषेक किया जगतमें बलभद्र नारायणकी अति प्रशंसा भई जैसे स्वर्गमें इन्द्र प्रतिइन्द्रकी महिमा होइ तैसे लंका में राम लक्ष्मण की महिमा भई, इद्रन्के नगर समान वह नगर महा भोगनिकर पूर्ण तहां रामलक्ष्मण की आज्ञासे विभीषण राज्य करे है, नदी सरोवरनिके तीर अर देश पुर ग्रामादिमें विद्याधर राम लक्ष्मणही का यश गावते भए, विद्याकरयुक्त अद्भुत आभूषण पहिरे सुन्दर बस्त्र मनोहर हार सुगंधादिकके विलेपन उनकर युक्त क्रीडा करते भए जैसे स्वर्ग में देव क्रीडा करें पर श्रीरामचन्द्र सीताका मुख देखते तृप्ति को न प्राप्त भए । कैसा है सीताका मुख १ सूर्यके किरणकर प्रफुखित भया जो कमल ता समान है प्रभा जाकी, अत्यन्त मनकी हरणहारी जो सीता ता सहित राम निरन्तर रमणीय भूमिमें रमते भए अर लक्ष्मण विशन्या सहित रतिको प्राप्त भए मन बांछित सकल वस्तु का है समागम जिनके उन दोऊ भईनिके बहुत दिन भोगोपभोगयुक्त सुखसे एक दिवस समान गए।
एक दिन लक्ष्मण सुन्दर लक्षणोंका थारणहारा विराधितको अपनी जे स्त्री तिनके लेयवे अर्थ पत्र लिख'बडी ऋद्धिसे पठावता मा सो जायकर कन्यानिके पितानिको पत्र देता भया, माता पितानिने बहुन हर्षित होय कन्याको पठाई सो बडी विभूतिसों आई । दशांग नगरके स्वामी बजानकी पुत्री रूपवती महारूपकी वरणहारी पर कवर स्थानके नाथ बालखिल्यकी
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