________________
४५०
पद्मपुराण
معهد الفسقنلننفخ
शयन करोगे। समस्त वैभव तजा, समस्त विद्या तजी, केवल आध्यात्मविद्यामें तत्पर भए पर राजा मय मुनि भया ताका शोक करे है ---हाय पिता ! यह क्या किया ? जगतको तज मुनिरूप धरा तुम मोसे तत्काल ऐसा स्नेह क्यों तजा ? मैं तिहारी पुत्री बालिका, मोपै दया क्यों न करी बालअवस्थामें मोपर तिहरी अति कृपा हुनी, मैं पिता अर पुत्र पति सबसे रहित भई, स्त्रीके यही रक्षक अब मैं कोनके शरण जाऊ मैं पुए हीन महा दखको प्राप्त भई या भांति मन्दोदरी रुदन करै ताका रुदन सुत सबहीको दया उपजे अश्रुपात कर चातुर्मास कर दिया ताहि शशिकांता श्राविका उत्तम वचन कर उपदेश देती भई—हे मूर्खिणी, कहा रोवै है या संसार चक्रमें जीवनिने अनन्त भव धरे तिनमें नारिकी अर देननिके तो सन्तान नाही अर मनुष्य पर तिर्यच. निके है सो चतुर्गति भ्रमण करते मनुष्य तियंचनिके भी अत्यंत जन्म धारे तिनमें तेरे अनंत पिता पुत्र बांधव भए जिनका ज म जन्म में रुदन किया अब कहा विलाप करे है ? निश्चलता भज यह संसार असार एक जिन धर्मही सार है । तू जिनधर्मका. आराथन कर दुखसे निवृत्त हो । ऐसे प्रतियोधके कारण आर्यिकाके मनोहर वचन सुन मन्दोदरी महा विरक्त भई । उत्तम गुण हैं जामें, समस्त परिग्रह तज कर एक शुक्ल वस्त्र धारकर आर्थिका भई । कैसी है मन्दोदरी? मन वचन कायम र निर्मल जो जिनशामन तामें अनुरागिणी है अर चन्द्रनखा रावणकी बहिन ह याही श्रायिकाके निकट दीक्षा धर आर्यिका भई। जा दिन मन्दोदरी आर्यिका भई ता दिन अडतालीस हजार अयिका भई ।।
इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ ताकी भाषा वचनिकाविषै इंद्रजीत मेघना कुम्भकरणका पैराग्य अर भदोदरी आदि रानीका गैराग्य कहनेवाला अठत्तरवा पर्व पूर्ण भया ॥८॥
अथाननर गौतम स्वामी राजा श्रेणिक कहे हैं-हे राजन् ! अब श्रीराम लक्ष्मणका विभूति सहित लंका में प्रवेश भया सो सुन । महा विमाननिके समूह अर हाथिनकी घटा भर श्रेष्ठ तरंगनिके समूड अ. मन्दिर समान रथ अर विद्याधरनिके समूह अर हजारा देव तिनकर यक्त दोनों भाई महाज्योतिको घरे लंकामें प्रवेश करते भए, तिनको देख लोक अति हर्षित भये. जन्मांतरके धर्मके फल प्रत्यक्ष देखते भये, राजमार्गक विष जाते श्रीराम लक्ष्मण तिनको देख नगरके नर पर नारिनको अपूर्व प्रानन्द भया । फूल रहे हैं. मुख जिनके, स्त्री झरोखनमें बैठी जालिनिमें होय देखे हैं । कपल समान है मुख जिनके, महा कौतुक कर युक्त परम्पर वार्ता करे हैं-सखी ! देखो यह राम राजा दशरथका पुत्र गुणरूप रत्ननिका राशि पूर्णमासीके चन्द्रमा समान हैं वदन जाका कमल समान नेत्र जाके अद्भुन पुण्यकर यह पद पाया है अति प्रशंसा योग्य है अकार ज.का, धन्य है वह कन्या जिन्होंने एसे वर पाये । जाने यह वर पाये ताने कीर्तिका थंभ लो में थापा, जाने जन्मान्तरमें धर्म आचरा होय सोही ऐसा नाथ पाये ता समान अन्य नारी कौन ? जाया अत्यंत, राजा जनककी पुत्री महा कल्याणरूपिणी जन्मान्तर में महा पुण्य उपार्ने हैं नाते यह एसे पति जैसे शची इन्द्रकं तैसे सीता रामके पर यह लक्ष्यण वासुदेव चक्रपाणि शंभे है जाने अनुरेंद्र सभान रावण रणमे हता, नील कमल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org